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________________ वहिदशा-१/१ नमो नमो निम्मलदंसणस्स २३ वहिदशा उपांगसूत्र - १२ - हिन्दी अनुवाद १६९ अध्ययन - १ - निषध [१] भगवन् ! यदि श्रमण यावत् मोक्ष को प्राप्त हुए भगवान् महावीर ने चतुर्थ उपांग पुष्पचूलिका का यह अर्थ कहा है तो हे भदन्त ! पांचवें वण्हिदसा नामक उपांग-वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादित किया है ? हे जम्बू ! पांचवें वह्निदशा उपांग के बारह अध्ययन कहे हैं। [२] निषध, मातलि, वह, वेहल, पगया, युक्ति, दशरथ, दृढरथ, महाधन्वा, सप्तधन्वा, दशधन्वा और शतधन्वा | [३] हे भदन्त ! श्रमण यावत् संप्राप्त भगवान् ने प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में द्वारवती - नगरी थी । वह पूर्व - पश्चिम में बारह योजन लम्बी और उत्तर-दक्षिण में नौ योजन चौड़ी थी, उसका निर्माण स्वयं धनपति ने अपने मतिकौशल से किया था । स्वर्णनिर्मित श्रेष्ठ प्राकार और पंचरंगी मणियों के बने कंगूरों से वह शोभित थी । अलकापुरी - समान सुन्दर थी । उसके निवासीजन प्रमोदयुक्त एवं क्रीडा करने में तत्पर रहते थे । वह साक्षात् देवलोक सरीखी प्रतीत होती थी । प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप थी । उस द्वारका नगरी के बाहर ईशान कोण में रैवतक पर्वत था । वह बहुत ऊँचा था और उसके शिखर गगनतल को स्पर्श करते थे । वह नाना प्रकार के वृक्षों, गुच्छों, गुल्मों, लताओं और वल्लियों से व्याप्त था । हंस, मृग, मयूर आदि पशु-पक्षियों के कलरव से गूंजता रहता था । उसमें अनके तट, मैदान, गुफाएँ, झरने, प्रपात, प्राग्भार और शिखर थे । वह पर्वत अप्सराओं के समूहों, देवों के समुदायों, चारणों और विद्याधरो के मिथुनों व्याप्त रहता था । तीनों लोकों में बलशाली माने जानेवाले दसारवंशीय वीर पुरुषों द्वारा वहां नित्य नये-नये उत्सव मनाए जाते थे । वह पर्वत सौम्य, सुभग, देखने में प्रिय, सुरूप, प्रासादिक, दर्शनीय, मनोहर और अतीव मनोरम था । उस रैवतक पर्वत से न अधिक दूर और न अधिक समीप नन्दनवन उद्यान था । वह सर्व ऋतुओं संबन्धी पुष्पों और फलों से समृद्ध, रमणीय नन्दनवन के समान आनन्दप्रद; दर्शनीय, मनमोहक और मन को आकर्षित करने वाला था । उस नन्दनवन उद्यान के अति मध्य भाग में सुरप्रिय यक्ष का यक्षायतन था । वह अति पुरातन था यावत् बहुत से लोग वहाँ आ-आकर सुरप्रिय यक्षायतन की अर्चना करते थे । वह सुरप्रिय यक्षायतन पूर्णभद्र चैत्य के समान चारों ओर से एक विशाल वनखंड से पूरी तरह घिरा हुआ था, यावत् उस वनखण्ड में एक पृथ्वीशिलापट्ट था । उस द्वारका नगरी में कृष्ण वासुदेव राजा थे । वे वहाँ समुद्रविजय आदि दस दसारों का, बलदेव आदि पांच महावीरों का, उग्रसेन आदि १६००० राजाओं का, प्रद्युम्न आदि साढे तीन करोड़ कुमारों का, शाम्ब आदि ६०००० दुर्दान्त योद्धाओं का, वीरसेन
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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