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________________ प्रज्ञापना-२१/-/५१९ ९५ गर्भजमनुष्यों में गौतम ! संयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भज-मनुष्यों को आहारकशरीर होता है, असंयत-सम्यग्दृष्टि० और संयतासंयत-सम्यग्दृष्टि० को नहीं । संयतसम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवायुष्क-कर्मभूमिकगर्भज-मनुष्यों में, गौतम ! प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टिपर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कमभूमिज-गर्भज-मनुष्यों के आहारकशरीर होता है, अप्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टि० को नहीं । प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भज-मनुष्यों में, गौतम ! ऋद्धिप्राप्त-प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भजमनुष्यों के आहारशरीर होता है, अनृद्धिप्राप्त-प्रमत्तसंयत० को नहीं । भगवन् ! आहारकशरीर किस संस्थान का है ? गौतम ! समचतुरस्रसंस्थान वाला । भगवन् ! आहारकशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य देशोन एक हाथ, उत्कृष्ट पूर्ण एक हाथ की है। [५२०] भगवन् ! तैजसशरीर कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का, एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रियतैजसशरीर । एकेन्द्रियतैजसशरीर कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का, पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक-तैजसशरीर । इस प्रकार औदारिकशरीर के भेद के समान तैजसशरीर को भी चतुरिन्द्रिय तक कहना । पंचेन्द्रियतैजसशरीर कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, नैरयिक यावत् देवतैजसशरीर । नारकों के वैक्रियशरीर के दो भेद के समान तैजसशरीर के भी भेद कहना | पंचेन्द्रियतिर्यचों और मनुष्यों के औदारिकशरीर के समान इनके तैजसशरीर को भी कहना । देवों के वैक्रियशरीर के भेद के समान यावत् सर्वार्थसिद्ध देवों (तक) के तैजसशरीर के भेदों का कथन करना । भगवन् ! तैजसशरीर का संस्थान किस प्रकार का है ? गौतम ! विविध प्रकार का । एकेन्द्रियतैजसशरीर का संस्थान ऐसा ही जानना । पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रियतैजसशरीर का संस्थान, गौतम ! मसूरचन्द्र आकार का है । इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रियों को इनके औदारिकशरीरसंस्थानों के अनुसार कहना । नैरयिकों का तैजसशरीर का संस्थान, इनके वैक्रियशरीर समान है । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों और मनुष्यों को इनके औदारिकशरीर संस्थानों समान जानना । देवों के तैजसशरीर का संस्थान यावत् अनुत्तरीपपातिक देवों के वैक्रियशरीर समान कहना । [५२१] भगवन् ! मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत जीव के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी होती है ? गौतम ! विष्कम्भ और बाहल्य, अनुसार शरीरप्रमाणमात्र ही होती है । लम्बाई की अपेक्षा जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट लोकान्त से लोकान्त तक है। मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत एकेन्द्रिय के तैजसशरीर की अवगाहना ? गौतम ! इसी प्रकार पृथ्वी से वनस्पतिकायिक तक पूर्ववत् समझना । मारणान्तिकसमुद्धात से समवहत द्वीन्द्रिय के तैजसशरीर की ? गौतम ! विष्कम्भ एवं बाहल्य, से शरीरप्रमाणमात्र होती है । तथा लम्बाई से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तिर्यक लोक से लोकान्त तक अवगाहना समझना । इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय तक समझ लेना । मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत नारक के तैजसशरीर की अवगाहना.? गौतम ! विष्कम्भ और बाहल्य से शरीरप्रमाणमात्र तथा आयाम से जघन्य सातिरेक एक हजार योजन, उत्कृष्ट नीचे की ओर अधःसप्तमनरकपृथ्वी तक, तिरछी यावत् स्वयम्भूरमणसमुद्र तक और ऊपर पण्डकवन में स्थित पुष्करिणी तक है । मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च के तैजसशरीर की अवगाहना ? गौतम !
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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