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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद यावत् भवधारणीया जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्टतः पन्द्रह धनुष, ढाई रत्नि, उत्तरखैक्रिया जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्टः इकतीस धनुष एक रनि है । वालुकाप्रभा की भवधारणीया इकतीस धनुष एक रत्नि की है, उत्तरवैक्रिया बासठ धनुष, दो हाथ है । पंकप्रभा यावत् अधः सप्तमी की दोनो अवगाहना पूर्व पूर्व से दुगुनी समझना यथा - अधः सप्तम की भवधारणीया पांच सौ धनुष की, उत्तरवैक्रिया एक हजार धनुष की है। इन सबकी जघन्यतः भवधारणीया और उत्तरवैक्रिया दोनो अंगुल के संख्यातवें भाग है । ९४ तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः शतयोजनपृथक्त्व की । मनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना ? गौतम ! जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः कुछ अधिक एक लाख योजन की है । असुरकुमार भवनवासी देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना ? गौतम ! दो प्रकार की है, भवधारणीया और उत्तरवैक्रिया । भवधारणीया जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः सात हाथ की है । उत्तरवैक्रिया - अवगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः एक लाख योजन की है । इसी प्रकार स्तनितकुमार देवों (तक) समझ लेना । इसी प्रकार औधिक वाणव्यन्तरदेवों की समझ लेना । इसी तरह ज्योतिष्कदेवों की भी जानना । सौधर्म और ईशान देवों की यावत् अच्युतकल्प के देवों तक की भवधारणीयाशरीरावगाहना भी इन्हीं के समान समझना, उत्तरखैक्रिया शरीरावगाहना भी पूर्ववत् समझना । विशेष यह कि सनत्कुमारकल्प के देवों की भवधारणीया - शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट छह हाथ की है, इतनी ही माहेन्द्रकल्प की है । ब्रह्मलोक और तक कल्प के देवों की पांच हाथ, महाशुक्र और सहस्रार कल्प के देवों की चार हाथ, एवं आनत, प्राणत, आरण और अच्युत के देवों की शरीरावगाहना तीन हाथ है । ग्रैवेयककल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रियों को एक मात्र भवधारणीया शरीरावगाहना होती है । वह जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्टतः दो हाथ की है । इसी प्रकार अनुत्तरौपपातिकदेवों को भी समझना विशेष यह कि उत्कृष्ट एक हाथ की है । [५१९] आहारकशरीर कितने प्रकार का है ? गौतम ! एक प्रकार का । यदि आहारकशरीर एक ही प्रकार का है तो वह मनुष्य के होता है अथवा अमनुष्य के ? गौतम ! मनुष्य के आहारकशरीर होता है, मनुष्येतर को नहीं । मनुष्यों में, गौतम ! गर्भज मनुष्य के आहारकशरीर होता है; सम्मूर्च्छिम को नहीं । गर्भज मनुष्य में गौतम ! कर्मभूमिज-गर्भजमनुष्य के आहारकशरीर होता है, अकर्म-भूमिज० और अन्तरद्वीपज को नहीं । कर्मभूमिज - गर्भज - मनुष्य में, गौतम ! संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक- गर्भज मनुष्य को आहारकशरीर होता है, असंख्यातवर्षायुष्क को नहीं । संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भज मनुष्यों में, गौतम ! पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क- कर्मभूमिज-गर्भज मनुष्यों के आहारकशरीर होता है अपर्याप्तक० को नहीं । पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भज मनुष्यों में, गौतम ! सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भज मनुष्यों को आहारकशरीर होता है, न तो मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि - पर्याप्तक० को नहीं होता है । सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिज
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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