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________________ ८१ प्रज्ञापना - १८/-/ ४७८ अपेक्षा से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक पल्योपमपृथक्त्व तक रहता है । पुरुषवेदक जीव पुरुषवेदकरूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक सागरोपमशतपृथक्त्व तक रहता है । नपुंसकवेदक नपुंसकवेदकपर्याययुक्त जघन्य एक समय और उत्कृष्ट वनस्पतिकालपर्यन्त रहता है । अवेदक दो प्रकार के हैं, सादिअनन्त और सादि- सान्त । जो सादि- सान्त है, वह जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक अवेदकरूप में रहता है । [४७९] भगवन् ! सकषायी जीव कितने काल तक सकषायीरूप में रहता है ? गौतम ! सकषायी जीव तीन प्रकार के हैं, अनादिअपर्यवसित, अनादि - सपर्यवसित और सादिसपर्यवसित । जो सादि - सपर्यवसित है, उसका कथन सादि सपर्यवसित सवेदक के अनुसार यावत् क्षेत्रतः देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त तक करना । भगवन् ! क्रोधकषायी क्रोधकषायीपर्याय से युक्त कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त तक । इसी प्रकार यावत् मायाकषायी को समझना । लोभकषायी, लोभकषायी के रूप में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है । अकषायी दो प्रकार के हैं । सादिअपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । जो सादि सपर्यवसित है, वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है । [ ४८० ] भगवन् ! सलेश्यजीव सलेश्य अवस्था में कितने काल तक रहता है ? गौतम! सलेश्य दो प्रकार के हैं । अनादि अपर्यवसित और अनादि सपर्यवसित । भगवन् ! कृष्णश्यावाला जीव कितने काल तक कृष्णलेश्यावाला रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम तक । नीललेश्यावाला जीव जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम तक, कापोतलेश्यावान् जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम तक, तेजोलेश्यावान् जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम तक, पद्मलेश्यावान् जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक दस सागरोपम तक, शुक्ललेश्यावान् जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम तक अपने अपने पर्याय में रहते हैं । भगवन् ! अलेश्यी जीव कितने काल तक अलेश्यीरूप में रहता है ? गौतम ! वे सादि - अपर्यवसित है । [४८१] भगवन् ! सम्यग्दृष्टि कितने काल तक सम्यग्दृष्टिरूप में रहता है ? गौतम ! सम्यग्दृष्टि दो प्रकार के हैं, सादि- अपर्यवसित और सादि सपर्यवसित । जो सादि - सपर्यवसित है, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम तक रहता है । मिथ्यादृष्टि तीन प्रकार के हैं । अनादि अपर्यवसित, अनादि सपर्यवसित और सादि - सपर्यवसित। जो सादि-सपर्यवसित है, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक; काल से अनन्त उत्सर्पिणो-अवसर्पिणियों और क्षेत्र से देशोन अपार्द्ध पुद्गल - परावर्त्त तक ( मिथ्यादृष्टिपर्याय से युक्त रहता है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक सम्यग्दृष्टिपर्याय में रहता है । [४८२ ] भगवन् ! ज्ञानी जीव कितने काल तक ज्ञानीपर्याय में निरन्तर रहता है ? गौतम ! ज्ञानी दो प्रकार के हैं, सादि - अपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । जो सादि सपर्यवसित है, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम तक रहता है । 86
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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