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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद भगवन् ! वादर जीव, बादर जीव के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक, कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी तक, क्षेत्रतः अंगुल के असंख्यातवें भाग-प्रमाण । बादर पृथ्वीकायिक बादर पृथ्वीकायिक रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सत्तर कोडाकोडी सागरोपम रहता है । इसी प्रकार बादर अकायिक एवं बाद वायुकायिक में भी समझना । बादर वनस्पतिकायिक बादर वनस्पतिकायिक के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक, कालतः - असंख्यात उत्सर्पिणीअवसर्पिणियों तक क्षेत्रतः अंगुल के असंख्यातवें भाग-प्रमाण रहता है । प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सत्तर कोटाकोटी सागरोपम तक रहता है । निगोद, निगोद के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अनन्तकाल तक, कालतः अनन्त उत्सर्पिणीअवसर्पिणियों तक, क्षेत्रतः ढाई पुद्गलपरिवर्त्त तक रहता है । बादर निगोद, बादर निगोद के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सत्तर कोटाकोटी सागरोपम तक रहता है । बाद त्रसकायिक बादर त्रसकायिक के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातवर्ष अधिक दो हजार सागरोपम तक रहता है । ८० इन सभी के अपर्याप्तक जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल तक अपने-अपने पूर्व पर्यायों में रहते हैं । बादर पर्याप्तक, बादर पर्याप्तक के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक शतसागरोपमपृथक्त्व तक रहता है । बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तक जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक रहता है । इसी प्रकार अप्कायिक में भी समझना । तेजस्कायिक पर्याप्तक (बादर) तेजस्कायिक पर्याप्तक रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात रात्रि-दिन तक रहता है । वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक अपने-अपने पर्याय में रहते हैं । निगोदपर्याप्तक और बादर निगोदपर्याप्तक जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक (स्वस्वपर्याय में रहते हैं ।) भगवन् ! बादर त्रसकायिकपर्याप्तक बादर त्रसकायिकपर्याप्तक के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट कुछ अधिक शतसागरोपम - पृथक्त्व पर्यन्त रहता है । [४७७] भगवन् ! सयोगी जीव कितने काल तक सयोगीपर्याय में रहता है ? गौतम ! सयोगी जीव दो प्रकार के हैं । अनादि अपर्यवसित और अनादि सपर्यवसित । भगवन् ! मनोयोगी कितने काल तक मनोयोगी अवस्था में रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त । इसी प्रकार वचनयोगी भी समझना । काययोगी, काययोगी के रूप में जघन्य-अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक रहता है । अयोगी सादि - अपर्यवसित है । [४७८] भगवन् ! सवेद जीव कितने काल तक सवेदरूप में रहता है ? गौतम ! सवेद जीव तीन प्रकार के हैं । अनादि-अनन्त, अनादि - सान्त और सादि- सान्त । जो सादि - सान्त है, वह जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः अनन्तकाल तक; काल से अनन्त उत्सर्पिणीअवसर्पिणियों तक तथा क्षेत्र की अपेक्षा से देशोन अपार्द्धपुद्गलपरावर्त्त तक रहता है । भगवन् ! स्त्रीवेदक जीव स्त्रीवेदकरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट में एक अपेक्षा से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक सौ दस पल्योपम तक, एक अपेक्षा से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक अठारह पल्योपम तक, एक अपेक्षा से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक चौदह पल्योपम तक, एक अपेक्षा से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक सौ पल्योपम तक, एक
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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