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________________ प्रज्ञापना-१०/-/३६५ ३१ एक अवक्तव्य है । भगवन् ! षट्प्रदेशिक स्कन्ध ? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित् अवक्तव्य है, कथंचित् चरम और अचरम है, कथंचित् एक चरम और अनेक अचरमरूप है, कथंचित् अनेक चरम और एक अचरम है, कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप है, कथंचित् एक चरम और अवक्तव्य है, कथंचित् एक चरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, कथंचित् एक चरम, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, कथंचित् अनेक चरमरूप,अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है और कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है ।। भगवन् ! सप्तप्रदेशिक स्कन्ध ? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित् अवक्तव्य है, कथंचित् चरम और अचरम है, कथंचित् एक चरम और अनेक अचरमरूप है, कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अचरम है, कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप है, कथंचित् एक चरम और एक अवक्तव्य है, कथंचित् एक चरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, कथंचित् एक चरम, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, कथंचित एक चरम, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, कथंचित् एक चरम, अनेक चरमरूप और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरुप एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है, कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है । भगवन् ! अष्टप्रदेशिक स्कन्ध ? गौतम ! १. कथंचित् चरम है, ३. कथंचित् अवक्तव्य है, ७. कथंचित् एक चरम और एक अचरम है, ८. कथंचित् एक चरम और अनेक अचरमरूप है, ९. कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अचरम है, १०. कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप है, ११. कथंचित् चरम और अवक्तव्य है, १२. कथंचित् एक चरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, १३. कथंचित अनेक चरमरूप और एक अवक्तव्यरूप है, १४. कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, १९. कथंचित् चरम, अचरम और अवक्तव्यरूप है, २०. कथंचित् एक चरम, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, २१. कथंचित् एक चरम, अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है, २२. कथंचित् एक चरम, अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, २३. कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, २४. कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, २५. कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूष और एक अवक्तव्य है, और २६. कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है । ३६६] परमाणुपुद्गल में तृतीय भंग, द्विप्रदेशीस्कन्ध में प्रथम और तृतीय भंग, त्रिप्रदेशीस्कन्ध में प्रथम, तीसरा, नौवाँ और ग्यारहवां भंग होता है ।। [३६७] चतुःप्रदेशीस्कन्ध में पहला, तीसरा, नौवाँ, दसवाँ, ग्यारहवाँ, बारहवाँ और तेईसवाँ भंग है ।
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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