SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद समचक्रवाल है । (६) विषम चक्रवाल है । (७) अर्द्धचक्रवाल है । (८) छत्राकार है । (९) हाकार है । (१०) गृहापण संस्थित है । ( ११ ) प्रासाद आकार है । (१२) गोपुराकार है। (१३) प्रेक्षागृहाकार है । (१४) वल्लभी संस्थित है । (१५) हर्म्यतल संस्थित है । (१६) सोलहवां मतवादी चन्द्रसूर्य की संस्थिति वालाग्रपोतिका आकार की बताते है । इसमें जो संस्थिति को समचतुरस्राकार की बताते है वह कथन नय द्वारा ज्ञातव्य है, अन्य से नहीं । तापक्षेत्र की संस्थिति के सम्बन्ध में भी सोलह प्रतिपत्तियां है । अन्य मतवादी अपना अपना कथन इस प्रकार से बताते है - (१ से ८) तापक्षेत्र संस्थिति गेहाकार यावत् वालाग्रपोतिका आकार की है । (९) जंबूद्वीप की संस्थिति के समान है । (१०) भारत वर्ष की संस्थिति के समान है । (99) उद्यान आकार है । (१२) निर्याण आकार है । (१३) एकतः निषध संस्थान संस्थित है । (१४) उभयतः निषध संस्थान संस्थित है । (१५) श्वेक पक्षि के आकार की है । (१६) श्वेनक पक्षी के पीठ के आकार की है । भगवंत फरमाते है कि यह तापक्षेत्र संस्थिति उर्ध्वमुख कलंब के पुष्प के समान आकारवाली है । अंदर से संकुचित-गोल एवं अंक के मुख के समान है और बाहर से विस्तृत - पृथुल एवं स्वस्ति के मुख के समान है । उसके दोनो तरफ दो बाहाए अवस्थित है । वह बहाए आयाम से ४५-४५ हजार योजन है । वह बाहाए सर्वाभ्यन्तर और सर्वबाह्य है । इन दोनो बाहा का माप बताते है - जो सर्वाभ्यन्तर बाहा है वह मेरु पर्वत के समीप में ९४८६ योजन एवं एक योजन के नव या दस भाग योजन परिक्षेप से कही है । मंदरपर्वत के परिक्षेप को तीन गुना करके दश से भाग करना, वह भाग परिक्षेप विशेष का प्रमाण है । जो सर्वबाह्य बाहा है वह लवण समुद्र के अन्त में ९४८६८ योजन एवं एक योजन के चार दशांश भाग से परिक्षिप्त है । जंबूद्वीप के परिक्षेप को तीन गुना करके दश से छेद करके दश भाग घटाने से यह परिक्षेप विशेष कहा जाता है । १५८ हे भगवन् ! यह तापक्षेत्र आयाम से कितना है ? यह तापक्षेत्र आयाम से ७८३२३ योजन एवं एक योजन के एकतृतीयांश आयाम से कहा है । तब अंधकार संस्थिति कैसे कही है ? यह संस्थिति तापक्षेत्र के समान ही जानना । उसकी सर्वाभ्यन्तर बाहा मंदर पर्वत के निकट ६३२४ योजन एवं एक योजन के छ दशांश भाग प्रमाण परिक्षेप से जानना, यावत् सर्वबाह्य बाहा लवण समुद्र के अन्त में ६३२४५ योजन एवं एक योजन के छ दशांश भाग परिक्षेप से हैं । जो जंबूद्वीप का परिक्षेप है, उसको दुगुना करके दश से छेद करना फिर दश भाग कम करके यह परिक्षेप होता है । आयाम से ७८३२३ योजन एवं एक योजन का एक तृतीयांश भाग होता है तब परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त प्रमाण दिन और जघन्या बाहमुहूर्त की रात्रि होती है । जो अभ्यन्तर मंडल की अन्धकार संस्थिति का प्रमाण है, वही बाह्य मंडल की तापक्षेत्र संस्थिति का प्रमाण है और जो अभ्यन्तर मंडल की तापक्षेत्र संस्थिति का प्रमाण है वही बाह्यमंडल की अन्धकार संस्थिति का प्रमाण है यावत् परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्टा अठ्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारहमुहूर्त का दिन होता है । उस समय जंबूद्वीप में सूर्य १०० योजन उर्ध्व प्रकाशीत करता है, १८०० योजन नीचे की तरफ तथा ४७२६३ योजन एवं एक योजन के इक्किस षष्ठ्यंश तीछे भाग को प्रकाशीत करता है । प्राभृत- ६ - का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy