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________________ सूर्यप्रज्ञप्ति - २/३/३३ १५७ भाग से एकएक मुहूर्त में गति करता है; उस समय यहां रहे हुए मनुष्यो को ४७२६२ एवं एक योजन के ईक्कीस पष्ठ्यंश भाग से सूर्य दृष्टिगोचर होता है । तब उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त का दिन और जघन्या बारहमुहूर्त की रात्रि होती है । यह हुए दुसरे छह मास । यह हुआ छह मास का पर्यवसान और यह हुआ आदित्य संवत्सर । प्राभृत- २ - का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण प्राभृत- ३ [३४] चंद्र-सूर्य कितने क्षेत्र को अवभासित- उद्योतित- तापित एवं प्रकाशीत करता है ? इस विषय में बारह प्रतिपत्तियां है । वह इस प्रकार - (१) गमन करते हुए चंद्र-सूर्य एक द्वीप और एक समुद्र को अवभासित यावत् प्रकाशित करते है । (२) तीन द्वीप - तीन समुद्र को अवभासित यावत् प्रकाशीत करते है । (३) अर्द्ध चतुर्थद्वीप- अर्द्ध चतुर्थ समुद्र को अवभासित आदि करते है । (४) सात द्वीप- सात समुद्रो को अवभासित आदि करते है । (५) दश द्वीप और दश समुद्र को अवभासित आदि करते है (६) बारह द्वीप - बारह समुद्र को अवभासित आदि करते है । (७) बयांलीस द्वीप-बयांलीस समुद्र को अवभासित आदि करते है । (८) बहत्तर द्वीप बहत्तर समुद्र को अवभासित आदि करते है । (९) १४२ - १४२ द्वीप समुद्रो को अवभासित आदि करते है । (१०) १७२ - १७२ द्वीप समुद्रो को अवभासित आदि करते है । (११) १०४२ - १०४२ द्वीप समुद्र को अवभासित आदि करते है । (१२) चंद्र-सूर्य १०७२१०७२ द्वीप - समुद्रो को अवभासित यावत् प्रकाशीत करते है । भगवंत फरमाते है कि यह जंबूद्वीप सर्वद्वीप समुद्रो से घीरा हुआ है । एक जगति से चारो तरफ से परिक्षिप्त है । इत्यादि कथन “ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति" सूत्रानुसार यावत् १५६००० नदीयां से युक्त है, यहां तक कहना । यह जंबूद्वीप पांच चक्र भागो से संस्थित है । हे भगवन् जंबूद्वीप पांच चक्र भागो से किस प्रकार संस्थित है ? जब दोनो सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल से उपसंक्रमण करके गति करते है, तब जंबूद्वीप के तीनपंचमांश चक्र भागो को अवभासित यावत् प्रकाशित करते है, एक सूर्य द्व्यर्द्ध पंच चक्रवाल भाग को और दूसरा अन्य द्वयर्द्ध चक्रवाल भाग को अवभासीत यावत् प्रकाशीत करता है । उस समय परम उत्कर्ष प्राप्त अठ्ठारह उत्कृष्ट मुहूर्त का दिन और जघन्या बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । जब दोनो सूर्य सर्वबाह्य मंडल में उपसंक्रमण करके गति करते है, तब जंबूद्वीप के दो चक्रवाल भाग को अवभासीत यावत् प्रकाशीत करते है, अर्थात् एक सूर्य एक पंचम भाग को और दूसरा सूर्य दुसरे एकपंचम चक्रवाल भाग को अवभासित यावत् प्रकाशीत करता है, उस समय उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है । प्राभृत- ३ - का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण प्राभृत-४ [३५] श्वेत की संस्थिति किस प्रकार की है ? श्वेत संस्थिति दो प्रकार की है--चंद्रसूर्य की संस्थिति और तापक्षेत्र की संस्थिति । चन्द्र सूर्य की संस्थिति के विषय में यह सोलह प्रतिपत्तियां (परमतवादी मत) है । कोइ कहता है कि (१) चन्द्र-सूर्य की संस्थिति समचतुरस्र है । (२) विषम चतुरस्र है । ( ३ ) समचतुष्कोण है । (४) विषम चतुष्कोण है । ( ५ )
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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