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________________ १३८ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार होते हैं । इसी प्रकार समस्त जीवों और मनुष्यों में जानना । मनुष्य के मनुष्यपर्याय में अतीत आहारकसमुद्घात किसी के हुए हैं, किसी के नहीं हुए । जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार होते हैं । इसी प्रकार भावी भी जानना । इस प्रकार ये चौबीस दण्डक चौबीसों दण्डकों में यावत् वैमानिकपर्याय में कहना । एक-एक नैरयिक के नारकत्वपर्याय में कितने केवलिसमुद्घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! नहीं हुए हैं। और भावि में भी नहीं होते । इसी प्रकार वैमानिकपर्याय तक कहना । विशेष यह कि मनुष्यपर्याय में अतीत केवलिसमुद्घात नहीं होता । भावी किसी के होता है, किसी के नहीं होता है । जिसके होता है, उसके एक होता है । मनुष्य के मनुष्यपर्याय में अतीत केवलिसमुद्घात किसी के होता है, किसी के नहीं होता । जिसके होता है, उसके एक होता है । इसी प्रकार भावी में भी कहना । इस प्रकार ये चौबीसों दण्डक चौबीसों दण्डकों में जानना । [६०६] भगवन् ! (बहुत-से) नारकों के नारकपर्याय में रहते हुए कितने वेदनासमुद्घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! अनन्त । भावी कितने होते हैं ? गौतम ! अनन्त । इसी प्रकार वैमानिकपर्याय तक जानना । इसी प्रकार सर्व जीवों के यावत् वैमानिकों के वैमानिकपर्याय में समझना । इसी प्रकार तैजससमुद्घात पर्यन्त कहना । विशेष यह कि जिसके वैक्रिय और तैजससमुद्घात सम्भव हों, उसी के कहना । भगवन् ! (बहुत) नारकों के नारकपर्याय में रहते हुए कितने आहारकसमुद्घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! एक भी नहीं । भावी (आहारकसमुद्घात) कितने होते हैं ? गौतम ! नहीं होते । इसी प्रकार यावत् वैमानिकपर्याय में कहना विशेष यह कि मनुष्यपर्याय में असंख्यात अतीत और असंख्यात भावी आहारकसमुद्घात होते हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना । विशेष यह कि वनस्पतिकायिकों के मनुष्यपर्याय में अनन्त अतीत और अनन्त भावी होते हैं। मनुष्यों के मनुष्यपर्याय में कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात अतीत एवं भावि भी जानना । शेष सब नारकों के समान समझना । इस प्रकार इन चौबीसों के चौबीस दण्डक होते हैं । भगवन् ! नारकों के नारकपर्याय में रहते हुए कितने केवलिसमुद्घात अतीत हुए हैं । गौतम ! नहीं हुए और भावि में भी नहीं होते । इसी प्रकार वैमानिकपर्याय पर्यन्त कहना । विशेष यह कि मनुष्यपर्याय में अतीत नहीं होते, किन्तु भावी असंख्यात होते हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना । विशेष यह कि वनस्पतिकायिकों के मनुष्यपर्याय में अतीत नहीं होते । भावी अनन्त होते हैं । मनुष्यों के मनुष्यपर्याय में अतीत केवलिसमुद्घात कदाचित् होते हैं, कदाचित नहीं होते । जिसके होता है, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शत- पृथक्त्व होते हैं । मनुष्यों के भावी केवलिसमुद्घात कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होते हैं । इस प्रकार इन चौवीस दण्डकों में चौबीस दण्डक घटित करके पृच्छा के अनुसार वैमानिकों के वैमानिकपर्याय तक कहना । [६०७ ] भगवन् ! इन वेदना, कपाय, मारणान्तिक, वैक्रिय, तैजस, आहारक और केवलिसमुद्घात से समवहत एवं असमवहत जीवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक ? गौतम ! सबसे कम आहारकसमुद्घात से समवहत जीव हैं, ( उनसे ) केवलिसमुद्घात से समवहत जीव संख्यातगुणा हैं, उनसे तैजससमुद्घात से समवहत जीव
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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