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________________ प्रज्ञापना-३६/-/६०४ १३७ होते हैं ? गौतम ! वे किसी के होते हैं, किसी के नहीं | जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होते हैं । इसी प्रकार नारक का यावत् स्तनितकुमारपर्याय में समझना । नारक का पृथ्वीकायिकपर्याय में एक से लेकर जानना । इसी प्रकार यावत् मनुष्यपर्याय में समझना । वाणव्यन्तरपर्याय में नारक के असुरकुमारत्व में के समान जानना । ज्योतिष्कदेवपर्याय में अतीत कषायसमुद्घात अनन्त हैं तथा भावी कषायसमुद्घात किसी का होता है, किसी का नहीं होता । जिसका होता, उसका कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होता है । इसी प्रकार वैमानिकपर्याय में भी जानना । असुरकुमार के नैरयिकपर्याय में अतीत कषायसमुद्घात अनन्त होते हैं । भावी कपायसमुद्घात किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते । जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात, असंख्यात और अनन्त होते हैं । असुरकुमार के असुरकुमारपर्याय में अतीत (कषायसमुद्घात) अनन्त हैं और भावी एक से लेकर कहना । इसी प्रकार नागकुमारत्व से वैमानिकत्व तक नैरयिक के समान कहना । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक भी यावत् वैमानिकत्व में पूर्ववत् कथन समझना । विशेष यह कि इन सबके स्वस्थान में भावी कषायसमुद्घात एक से लगा कर हैं और परस्थान में असुरकुमार के समान हैं । पृथ्वीकायिक जीव के नारक यावत् स्तनितकुमारपर्याय में अनन्त (कषायसमुद्घात) अतीत हुए हैं, उसके भावी पर्याय कीसी को होते है है कीसी को नहीं जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होते हैं । पृथ्वीकायिक के पृथ्वीकायिक यावत् मनुष्य-अवस्था में (कषायसमुद्घात) अतीत अनन्त हैं । भावी किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते । जिसके होते हैं, उसके एक से अनन्त होते हैं । वाणव्यन्तर-अवस्था में नारकअवस्था के समान जानना । ज्योतिष्क और वैमानिक-अवस्था में अनन्त अतीत हुए हैं । भावी किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते । जिसके होते हैं, उसके कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होते हैं । इसी प्रकार मनुष्यत्व तक में भी जानना । वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों को असुरकुमारों के समान समझना । विशेष यह है कि स्वस्थान में एक से लेकर समझना तथा वैमानिक के वैमानिकत्व पर्यन्त कहना ।। [६०५] मारणान्तिकसमुद्धात स्वस्थान में भी और परस्थान में भी पूर्वोक्त एकोत्तरिका से समझ लेना, यावत् वैमानिक का वैमानिकपर्याय में कहना । इसी प्रकार ये चौबीस दण्डक चौवीसों दण्डकों में कहना । वैक्रियसमुद्घात की समग्र वक्तव्यता कपायसमुद्घात के समान कहना । विशेष यह कि जिसके (वैक्रियसमुद्घात) नहीं होता, उसके विषय में नहीं कहना। यहाँ भी चौबीस दण्डक चौबीस दण्डकों में कहना । तैजससमुद्घात का कथन मारणान्तिकसमुद्घात के समान कहना । विशेष यह कि जिसके वह होता है, उसी के कहना। इस प्रकार ये भी चौबीसों दण्डकों में कहना । एक-एक नारक के नारक-अवस्था में कितने आहारकसमुद्घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! नहीं होते । भावी आहारकसमुद्घात भी नहीं होते । इसी प्रकार यावत् वैमानिकअवस्था में समझना । विशेष यह कि मनुष्यपर्याय में अतीत (आहारकसमुद्घात) किसी के होता है, किसी के नहीं होता । जिसके होता है, उसके जघन्य एक अथवा दो और उत्कृष्ट तीन होते हैं । भावी आहारकसमुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते । जिसके होते
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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