SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद गौतम ! कई चतुरिन्द्रिय आहार्यमाण पुद्गलों को नहीं जानते, किन्तु देखते हैं और आहार करते हैं, कई चतुरिन्द्रिय न तो जानते हैं, न देखते हैं, किन्तु आहार करते हैं । पंचेन्द्रियतिर्यंचों में पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! कतिपय पंचेन्द्रियतिर्यञ्च जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं, कतिपय जानते हैं, देखते नहीं और आहार करते हैं, कतिपय जानते नहीं, देखते हैं और आहार करते हैं, कई पंचेन्द्रियतिर्यश्च न तो जानते हैं और न ही देखते हैं, किन्तु आहार करते हैं । इसी प्रकार मनुष्यों में भी जानना । वाणव्यन्तरों और ज्योतिष्कों को नैरयिकों के समान समझना | वैमानिक देव में पूर्ववत् प्रश्न–गौतम ! कई वैमानिक जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं और कई न तो जानते हैं, न देखते हैं, किन्तु आहार करते हैं। क्योंकी-गौतम ! वैमानिक देव दो प्रकार के हैं । -मायीमिथ्यादृष्टि-उपपन्नक और अमायीसम्यग्दृष्टि-उपपन्नक । इस प्रकार प्रथम इन्द्रिय-उद्देशक के समान कहना । ___ भगवन् ! नारकों के कितने अध्यवसान हैं ? गौतम ! असंख्येय । भगवन् ! वे अध्यवसानं प्रशस्त होते हैं या अप्रशस्त ? गौतम ! दोनो होते हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना । भगवन् ! नारक सम्यक्त्वाभिगमी होते हैं, अथवा मिथ्यात्वाभिगमी होते हैं, या सम्यग्मिथ्यात्वाभिगमी होते हैं ? गौतम ! तीनो होते है । इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त जानना । विशेष यह कि एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय केवल मिथ्यात्वाभिगमी होते हैं । [५८८] भगवन् ! क्या देव देवियों सहित और सपरिचार होते हैं ?, अथवा वे देवियोंसहित एवं अपरिचार होते हैं ?, अथवा वे देवीरहित एवं परिचारयुक्त होते हैं ? या देवीरहित एवं परिचारहित होते हैं ? गौतम ! (१) कई देव देवियोंसहित सपरिचार होते हैं, (२) कई देव देवियों के बिना सपरिचार होते हैं और (३) कई देव देवीरहित और परिचाररहित होते हैं, किन्तु कोई भी देव देवियों सहित अपरिचार नहीं होते । क्योंकी-गौतम ! भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म तथा ईशानकल्प के देव देवियों सहित और परिचारसहित होते हैं । सनत्कुमार, यावत् अच्युतकल्पों में देव, देवीरहित किन्तु परिचारसहित होते हैं । नौ ग्रैवेयक और पंच अनुत्तरींपपातिक देव देवीरहित और परिचारहित होते हैं । किन्तु ऐसा कदापि नहीं होता कि देव देवीसहित हों, साथ ही परिचार-रहित हों । [५८९] भगवन् ! परिचारणा कितने प्रकार की है ? गौतम ! पांच प्रकार की, कायपरिचारणा, स्पर्शपरिचारणा, रूपपरिचारणा, शब्दपरिचारणा और मनःपरिचारणा । गौतम ! भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म-ईशानकल्प के देव कायपरिचारक होते हैं । सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प में देव स्पर्शपरिचारक होते हैं । ब्रह्मलोक और लान्तककल्प में देव रूपपरिचारक होते हैं । महाशुक्र और सहस्रारकल्प में देव शब्द-परिचारक होते हैं । आनत से अच्युत कल्प में देव मनःपरिचारक होते हैं । नौ ग्रैवेयकों के और पांच अनुत्तरौपपातिक देव अपरिचारक होते हैं । जो कायपरिचारक देव हैं, उनके मन में इच्छा समुत्पन्न होती है कि हम अप्सराओं के शरीर से परिचार करना चाहते हैं । उन देवों द्वारा इस प्रकार मन से सोचने पर वे अप्सराएँ उदार आभूषणादियुक्त, मनोज्ञ, मनोहर एवं मनोरम उत्तरवैक्रिय रूप विक्रिया से बनाती हैं । इस प्रकार विक्रिया करके वे उन देवों के पास आती हैं । तब वे देव उन अप्सराओं के साथ कायपरिचारणा करते हैं । [१९०] जैसे शीत पुद्गल शीतयोनिवाले प्राणी को प्राप्त होकर अत्यन्त शीत
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy