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________________ प्रज्ञापना - २८/१/५५५ १२३ और उत्कृष्ट ३३ हजार वर्ष में आहारेच्छा होती है । सर्वार्थसिद्ध देवों को अजघन्य - अनुत्कृष्ट तेतीस हजार वर्ष में आहार की इच्छा उत्पन्न होती है । [५५६] भगवन् ! क्या नैरयिक एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रियशरीरों का आहार करते हैं ? गौतम ! पूर्वभावप्रज्ञापना की अपेक्षा से वे एकेन्द्रियशरीरों का भी आहार करते हैं, यावत् पंचेन्द्रियशरीरों का भी तथा वर्त्तमानभावप्रज्ञापना की अपेक्षा से नियम से वे पंचेन्द्रियशरीरों का आहार करते हैं । स्तनितकुमारों तक इसी प्रकार समझना । भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के विषय में प्रश्न । गौतम ! पूर्वभावप्रज्ञापना से नारकों के समान और वर्तमानभावप्रज्ञापना से नियम से वे एकेन्द्रियशरीरों का आहार करते हैं । द्वीन्द्रियजीवों पूर्वभावप्रज्ञापना से इसी प्रकार और वर्तमानभावप्रज्ञापना से वे नियम से द्वीन्द्रियशरीरों का आहार करते हैं । इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रियपर्यन्त पूर्वभावप्रज्ञापना से पूर्ववत् और वर्तमानभावप्रज्ञापना से जिसके जितनी इन्द्रियां हैं, उतनी ही इन्द्रियों वाले शरीर का आहार करते हैं । वैमानिकों तक शेष जीवों का कथन नैरयिकों के समान जानना । भगवन् ! नारक जीव लोमाहारी हैं या प्रक्षेपाहारी ? गौतम ! वे लोमाहारी हैं, इसी प्रकार एकेन्द्रिय जीवों और सभी देवों के विषय में कहना । द्वीन्द्रियों से लेकर मनुष्यों तक लोमाहारी भी हैं, प्रक्षेपाहारी भी हैं । [५५७] भगवन् ! नैरयिक जीव ओज-आहारी होते हैं, अथवा मनोभक्षी ? गौतम ! वे ओज - आहारी होते हैं । इसी प्रकार सभी औदारिकशरीरधारी भी ओज- आहारी हैं । वैमानिकों तक सभी देव ओज - आहारी भी होते हैं और मनोभक्षी भी । जो मनोभक्षी देव होते हैं, उनको इच्छामन उत्पन्न होती है । जैसे कि वे चाहते हैं कि हम मानो - भक्षण करें ! उन देवों के द्वारा मन में इस प्रकार की इच्छा किये जाने पर शीघ्र ही जो पुद्गल इष्ट, कान्त, यावत् मनोज्ञ, नाम होते हैं, वे उनके मनोभक्ष्यरूप में परिणत हो जाते हैं । तदनन्तर जिस किसी नाम वाले शीत पुद्गल, शीतस्वभाव को प्राप्त होकर रहते हैं अथवा उष्ण पुद्गल, उष्णस्वभाव को पाकर रहते हैं । हे गौतम ! इसी प्रकार उन देवों द्वारा मनोभक्षण किये जाने पर, उनका इच्छाप्रधान मन शीघ्र ही सन्तुष्ट - तृप्त हो जाता है । पद - २८ - उद्देशक - २ [५५८] द्वितीय उद्देशक में तेरह द्वार हैं- आहार, भव्य, संज्ञी, लेश्या, दृष्टि, संयत, कषाय, ज्ञान, योग, उपयोग, वेद, शरीर और पर्याप्तिद्वार । [५५९] भगवन् ! जीव आहारक है या अनाहारक ? गौतम ! कथंचित् आहारक है, कथंचित् अनाहारक । नैरयिक यावत् असुरकुमार और वैमानिक तक इसी प्रकार जानना । भगवन् ! एक सिद्ध आहारक होता है या अनाहारक होता ? गौतम ! अनाहारक होता है । भगवन् ! (बहुत) जीव आहारक होते हैं, या अनाहारक ? गौतम ! दोनो । भगवन् ! (बहुत) नैरयिक आहारक होते हैं या अनाहारक ? गौतम ! वे सभी आहारक होते हैं, अथवा बहुत आहारक और कोई एक अनाहारक होता है, या बहुत आहारक और बहुत अनाहारक होते हैं। इसी तरह वैमानिक - पर्यन्त जानना । विशेष यह कि एकेन्द्रिय जीवों का कथन बहुत जीवों के समान समझना । (बहुत) सिद्धों के विषय में प्रश्न । गौतम ! वे अनाहारक ही होते हैं ।
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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