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________________ १२२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद त्रीन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, वे पुद्गल उनमें घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की विमात्रा से पुनः पुनः परिणत होते हैं । चतुरिन्द्रिय द्वारा आहार के रूप में गृहीत पुद्गल चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय जिह्वेन्द्रिय एवं स्पर्शेन्द्रिय की विमात्रा से पुनः पुनः परिणत होते हैं । शेष कथन त्रीन्द्रियों के समान समझना । पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों का कथन त्रीन्द्रिय जीवों के समान जानना । विशेष यह कि उनमें जो आभोगनिर्वर्तित आहार है, उस आहार की अभिलाषा उन्हें जघन्य अन्तर्मुहूर्त से और उत्कृष्ट षष्ठभक्त से होती है । भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, वे पुद्गल पांचो इन्द्रियों में विमात्रा में पुनः पुनः परिणत होते हैं । मनुष्यों की आहार-सम्बन्धी वक्तव्यता भी इसी प्रकार है । विशेष यह कि उनकी आभोगनिर्वर्तित आहार की अभिलाषा जघन्य अन्तर्मुहूर्त में और उत्कृष्ट अष्टमभक्त होने पर होती है । वाणव्यन्तर देवों का आहार नागकुमारों के समान जानना । इसी प्रकार ज्योतिष्कदेवों का भी कथन है । किन्तु उन्हें आभोगनिवर्तित आहार की अभिलाषा जघन्य और उत्कृष्ट भी दिवस-पृथक्त्व में होती है । इसी प्रकार वैमानिक देवों की भी आहारसम्बन्धी वक्तव्यता जानना । विशेष यह कि इनको आभोगनिर्वर्तित आहार की अभिलाषा जघन्य दिवस-पृथक्त्व में और उत्कृष्ट तेतीस हजार वर्षों में उत्पन्न होती है । शेष वक्तव्यता असुरकुमारों के समान ‘उनके उन पुद्गलों का बार-बार परिणमन होता है', यहाँ तक कहना । सौधर्मकल्प में आभोगनिवर्तित आहार की इच्छा जघन्य दिवस-पृथक्त्व से और उत्कृष्ट दो हजार वर्ष से समुत्पन्न होती है । ईशानकल्प में जघन्य कुछ अधिक दिवस-पृथक्त्व में और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो हजार वर्ष में होती है। सनत्कुमार को जघन्य दो हजार वर्ष में और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष में आहारेच्छा होती है । माहेन्द्रकल्प में ? जघन्य कुछ अधिक दो हजार वर्ष में और उत्कृष्ट कुछ अधिक सात हजार वर्ष में, ब्रह्मलोक में जघन्य सात और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष में लान्तककल्प में जघन्य दस और उत्कृष्ट चौदह हजार वर्ष में; महाशुक्रकल्प में जघन्य चौदह और उत्कृष्ट सत्तरह हजार वर्ष में; सहस्रारकल्प में जघन्य सत्तरह और उत्कृष्ट अठारह हजार वर्ष में; आनतकल्प में जघन्य अठारह और उत्कृष्ट उन्नीस हजार वर्ष में प्राणतकल्प में जघन्य उन्नीस और उत्कृष्ट बीस हजार वर्ष में; आरणकल्प में जघन्य बीस और उत्कृष्ट इक्कीस हजार वर्ष में; अच्युतकल्प में जघन्य २१ और उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है । भगवन् ! अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक देवों की आहारसम्बन्धी पृच्छा है । गौतम ! जघन्य २२ और उत्कृष्ट २३ हजार वर्ष में देवों को आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है । अधस्तनमध्यम ग्रैवेयकों में, गौतम ! जघन्य २३ और उत्कृष्ट २४ हजार वर्ष में; अधस्तन-उपरिम ग्रैवेयकों में, जघन्य २४ और उत्कृष्ट २५ हजार वर्ष में; मध्यम-अधस्तन ग्रैवेयकों में जघन्य २५ और उत्कृष्ट २६ हजार वर्ष में; मध्यम-मध्यम ग्रैवेयकों को में जघन्य २६ और उत्कृष्ट २७ हजार वर्ष में; मध्यम-उपरिम ग्रैवेयकों में जघन्य २७ और उत्कृष्ट २८ हजार वर्ष में, उपरिम-अधस्तन ग्रैवेयकों में जघन्य २८ और उत्कृष्ट २९ हजार वर्ष में; उपरिम-मध्यम ग्रैवेयकों में जघन्य २९ और उत्कृष्ट ३० हजार वर्षों में; उपरिम-उपरिम ग्रैवेयकों में जघन्य ३० और उत्कृष्ट ३१ हजार वर्ष में आहार की इच्छा होती है । विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा होती है ? गौतम ! जघन्य ३१
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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