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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद छोटी घण्टिकाओं से युक्त हैं यावत् वे बड़े बड़े गजदन्त के समान हैं । उन नागदन्तकों में बहुत से रजतमय छीके कहे गये हैं । उन में वैडूर्यरत्न की धूपघटिकाएँ हैं । वे काले अगर, श्रेष्ठ चीड और लोभान के धूप की मघमघाती सुगन्ध के फैलाव से मनोरम हैं, शोभन गंध वाली है, वे सुगन्ध की गुटिका जैसी प्रतीत होती हैं । वे अपनी उदार, मनोज्ञ और नाक एवं मन को तृप्ति देने वाली सुगंध से आसपास के प्रदेशों को व्याप्त करती हुई अतीव सुशोभित हो रही हैं । उस विजयद्वार के दोनों ओर नैषेधिकाओं में दो दो सालभंजिका की पंक्तियाँ हैं। वे पुतलियाँ लीला करती हुई चित्रित हैं, सुप्रतिष्ठित हैं, ये सुन्दर वेशभूषा से अलंकृत हैं, ये रंगबिरंगे कपड़ों से सजित हैं, अनेक मालाएँ उन्हें पहनायी गई हैं, उनकी कमर इतनी पतली है कि मुट्ठी में आ सकती है । पयोधर समश्रेणिक चुचुकयुगल से युक्त हैं, कठिन, गोलाकार हैं, ये सामने की ओर उठे हुए हैं, पुष्ट हैं अतएव रति-उत्पादक हैं । इन पुतलियों के नेत्रों के कोने लाल हैं, उनके बाल काले हैं तथा कोमल हैं, विशद-स्वच्छ हैं, प्रशस्त लक्षणवाले हैं और उनका अग्रभाग मुकुट से आवृत है । अशोकवृक्ष का कुछ सहारा लिये हुए खड़ी हैं । वामहस्त से इन्होंने अशोक वृक्ष की शाखा के अग्रभाग को पकड़ रखा है । ये अपने तिरछे कटाक्षों से दर्शकों के मन को मानो चुरा रही हैं । परस्पर के तिरछे अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि मानो ये एक दूसरी को खिन्न कर रही हों । पृथ्वीकाय का परिणामरूप हैं और शाश्वत भाव को प्राप्त हैं । मुख चन्द्रमा जैसा है । आधे चन्द्र की तरह उनका ललाट है, उनका दर्शन चन्द्रमा से भी अधिक सौम्य है, उल्का के समान ये चमकीली हैं, इनका प्रकाश बिजली की प्रगाढ किरणों और अनावृत सूर्य के तेज से भी अधिक है । उनकी आकृति श्रृंगार-प्रधान है और उनकी वेशभूषा बहुत ही सुहावनी है । ये प्रासादीया, दर्शनीया, अभिरूपा और प्रतिरूपा हैं । ये अपने तेज से अतीव अतीव सुशोभित हो रही हैं। उस विजयद्वार के दोनों तरफ दो नैषेधिकाओं में दो दो जालकटक हैं . ये सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं । उस विजयद्वार के दोनों तरफ दो नैषेधिकाओं में दो घंटाओं की पंक्तियां हैं । वे सोने की बनी हुई हैं, वज्ररत्न की उनकी लालाएँ हैं, अनेक मणियों से बने हुए घंटाओं के पार्श्वभाग हैं, तपे हुए सोने की उनकी सांकलें हैं, घंटा बजाने के लिए खींची जाने वाली रज्जु चांदी की है । इन घंटाओं का स्वर ओघस्वर है । मेघ के समान गंभीर है, हंस स्वर है, क्रोंच स्वर है, नन्दिस्वर है, नन्दिघोष है, सिंहस्वर है । मंजुस्वर है, मंजुघोष । उन घंटाओं का स्वर अत्यन्त श्रेष्ठ है, स्वर और निर्घोष अत्यन्त सुहावना है । वे घंटाएँ अपने उदार, मनोज्ञ एवं कान और मन को तृप्त करने वाले शब्द से आसपास के प्रदेशों को व्याप्त करती हई अति विशिष्ट शोभा से सम्पन्न हैं । उस विजयद्वार की दोनों ओर नैषेधिकाओं में दो दो वनमालाओं की कतार है । ये वनमालाएँ अनेक वृक्षों और लताओं के किसलयरूप पल्लवों से युक्त हैं और भ्रमरों द्वारा भुज्यमान कमलों से सुशोभित और सश्रीक हैं । ये वनमालाएँ प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं तथा अपनी उदार, मनोज्ञ और नाक तथा मन को तृप्ति देनेवाली गंध से आसपास के प्रदेश को व्याप्त करती हुई अतीव अतीव शोभित होती हुई स्थित हैं। [१६८] उस विजयद्वार के दोनों तरफ दोनों नैषेधिकाओं में दो प्रकण्ठक हैं । ये चार योजन के लम्बे-चौड़े और दो योजन की मोटाईवाले हैं । ये सर्व व्रजरत्न के हैं, स्वच्छ हैं
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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