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________________ ४८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद छियानवे भिक्षा की दत्तियां होती हैं । सुकृष्णा आर्या ने सूत्रोक्त विधि के अनुसार इसी 'सप्तसप्तमिका' भिक्षुप्रतिमा तप की सम्यग आराधना की । इसमें आहार-पानी की सम्मिलित रूप से प्रथम सप्ताह में सात दत्तियां हुई, दूसरे सप्ताह में चौदह, तीसरे सप्ताह में इक्कीस, चौथे में अट्ठाईस, पांचवें में पैंतीस, छटे में बयालीस और सातवें सप्ताह में उनपचास दत्तियां होती हैं । इस प्रकार सभी मिलाकर कुल एक सौ छियानवे दत्तियां हुई । इस तरह सूत्रानुसार इस प्रतिमा का आराधन करके सुकृष्णा आर्या आर्य चन्दना आर्या के पास आई और उन्हें वंदना नमस्कार करके बोली-“हे आर्ये ! आपकी आज्ञा हो तो मैं ‘अष्ट-अष्टमिका' भिक्षु-प्रतिमा तप अंगीकार करके विचरूं ।" हे देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो । धर्मकार्य में प्रमाद मत करो ।। आर्यचन्दना आर्या से आज्ञा प्राप्त होने पर आर्या सुकृष्णा देवी अष्ट-अष्टमिका नामक भिक्षुप्रतिमा को धारण कर के विचरने लगी । पहले आठ दिनों में आर्या सुकृष्णा ने एक दत्ति भोजन की और एक दत्ति पानी की ग्रहण की । दूसरे अष्टक में अन्न-पानी की दो-दो दत्तियां ली । इसी प्रकार क्रम से तीसरे में तीन-तीन, चौथे में चार-चार, पांचवें में पांच-पांच, छठे में छह-छह, सातवें में सात-सात और आठवें में आठ-आठ अन्न-जल की दत्तियां ग्रहण की। इस अष्ट-अष्टमिका भिक्षु-प्रतिमा की आराधना में ६४ दिन लगे और २८८ भिक्षाएं ग्रहण की गई । इस भिक्षु-प्रतिमा की सूत्रोक्त पद्धति से आराधना करने के अनन्तर आर्या सुकृष्णा ने नव-नवमिकानामक भिक्षु-प्रतिमा की आराधना आरम्भ कर दी । नव-नवमिका भिक्षु-प्रतिमा की आराधना करते समय आर्या सुकृष्णा ने प्रथम नवक में प्रतिदिन एक एक दत्ति भोजन की और एक-एक दत्ति पानी की ग्रहण की । इसी प्रकार आगे क्रमशः एक-एक दत्ति बढाते हुए नौवें नवक में अन्न जल की नौ-नौ दत्तियां ग्रहण की। इस प्रकार यह नव-नवमिका भिक्षु-प्रतिमा इक्यासी दिनों में पूर्ण हुई । इसमें भिक्षाओं की संख्या ४०५ तथा दिनों की संख्या ८१ होती है । सूत्रोक्त विधि के अनुसार नव-नवमिका भिक्षुप्रतिमा की आराधना करने के अनन्तर आर्या सुकृष्णा ने दश-दशमिकानामक भिक्षु प्रतिमा की आराधना आरंभ की । दश-दशमिका भिक्षु-प्रतिमा की आराधना करते समय आर्या सुकृष्णा प्रथम दशक में एक-एक दत्ति भोजन और एक-एक दत्ति पानी की ग्रहण करती है । इसी प्रकार एक-एक दत्ति बढ़ाते हुए दसवें दशक में दस-दस दत्तियां भोजन की और पानी की स्वीकार करती हैं। दश-दशमिका भिक्षु-प्रतिमा में एक सौ रात्रि-दिन लग जाते हैं । इसमें साढ़े पांच सौ भिक्षाएँ और ११०० दत्तियां ग्रहण करनी होती हैं । सूत्रोक्त विधि के अनुसार दश-दशमिका भिक्षुप्रतिमा की आराधना करने के अनन्तर आर्या सुकृष्णा ने उपवास, बेला, तेला, चौला, पचौला, छह, सात, आठ, से लेकर पन्द्रह तथा मासखमण तक की तपस्या के अतिरिक्त अन्य अनेकविध तपों से अपनी आत्मा को भावित किया । इस कठिन तप के कारण आर्या सुकृष्णा अत्यधिक दुर्बल हो गई यावत् संपूर्ण कर्मों का क्षय करके मोक्षगति हो प्राप्त हुई । | वर्ग-८ अध्ययन-६ । [५५] इसी प्रकार महाकृष्णा ने भी दीक्षा ग्रहण की, विशेष-वह लघुसर्वतोभद्र प्रतिमा
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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