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________________ ३४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद की सेवा में आया । यावत् वह अनगार हो गया । ईर्या आदि समितियों से युक्त एवं गुत्तियों से गुप्त ब्रह्मचारी बन गया । - इसके बाद मकाई मुनि ने श्रमण भगवान् महावीर के गुणसंपन्न तथा वेशसम्पन्न स्थविरों के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और स्कंदक के समान गुणरत्नसंवत्सर तप का आराधन किया । सोलह वर्ष तक दीक्षापर्याय में रहे । अन्त में विपुलगिरि पर्वत पर स्कन्दक के समान ही संथारादि करके सिद्ध हो गये । किंकम भी मकाई के समान ही दीक्षा लेकर विपुलाचल पर सिद्ध बुद्ध मुक्त हुए । | वर्ग-६ अध्ययन-३ [२७] उस काल उस समय में राजगृह नगर था । गुणशीलक उद्यान था । श्रेणिक राजा थे । चेलना रानी थी । 'अर्जुन' नाम का एक माली रहता था । उसकी पत्नी बन्धुमतीथी, जो अत्यन्त सुन्दर एवं सुकुमार थी । अर्जुनमाली का राजगृह नगर के बाहर एक बड़ा पुष्पाराम था । वह पुष्पोद्यान कहीं कृष्ण वर्ण का था, यावत् समुदाय की तरह प्रतीत हो रहा था । उसमें पांचों वर्गों के फूल खिले हुए थे । वह बगीचा इस भांति हृदय को प्रसन्न एवं प्रफुल्लित करने वाला अतिशय दर्शनीय था । उस पुष्पाराम फूलवाडी के समीप ही मुद्गरपाणि यक्ष का यक्षायतन था, जो उस अर्जुनमाली के पुरखाओं से चली आई कुलपरंपरा से सम्बन्धित था । वह 'पूर्णभद्र' चैत्य के समान पुराना, दिव्य एवं सत्य प्रभाववाला था । उसमें मुद्गरपाणि नामक यक्ष की एक प्रतिमा थी, जिसके हाथ में एक हजार पल-परिमाण भारवाला लोहे का एक मुद्गर था । ___ वह अर्जुनमाली बचपन से ही मुद्गरपाणि यक्ष का उपासक था । प्रतिदिन बांस की छबड़ी लेकर वह राजगृह नगर के बाहर स्थित अपनी उस फूलवाडी में जाता था और फूलों को चुन-चुन कर एकत्रित करता था । फिर उन फूलों में से उत्तम-उत्तम फूलों को छांटकर उन्हें उस मुद्गरपाणि यक्ष के समक्ष चढ़ाता था । इस प्रकार वह उत्तमोत्तम फूलों से उस यक्ष की पूजा-अर्चना करता और भूमि पर दोनों घुटने टेककर उसे प्रणाम करता । इसके बाद राजमार्ग के किनारे बाजार में बैठकर उन फूलों को बेचकर अपनी आजीविका उपार्जन किया करता था । उस राजगृह नगर में 'ललिता' नाम की एक गोष्ठी थी । वह धन-धान्यादि से सम्पन्न थी तथा वह बहुतों से भी पराभव को प्राप्त नहीं हो पाती थी । किसी समय राजा का कोई अभीष्ट-कार्य संपादन करने के कारण राजा ने उस मित्र-मंडली पर प्रसन्न होकर अभयदान दे दिया था कि वह अपनी इच्छानुसार कोई भी कार्य करने में स्वतन्त्र है । राज्य की ओर से उसे पूरा संरक्षण था, इस कारण यह गोष्ठी बहुत उच्छंखल और स्वच्छन्द बन गई । एक दिन राजगृह नगर में एक उत्सव मनाने की घोषणा हुई । इस पर अर्जुनमाली ने अनुमान किया कि कल इस उत्सव के अवसर पर बहुत अधिक फूलों की मांग होगी । इसलिये उस दिन वह प्रातःकाल में जल्दी ही उठा और वांस की छबड़ी लेकर अपनी पत्नी बन्धुमती के साथ जल्दी घर से निकला । नगर में होता हुआ अपनी फुलवाड़ी में पहुंचा और अपनी पत्नी के साथ फूलों को चुन-चुन कर एकत्रित करने लगा । उस समय पूर्वोक्त “ललिता' गोष्ठी के
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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