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________________ अन्तकृद्दशा-५/१/२० ३३ अर्थ का आराधन कर अन्तिम श्वास से सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गई । | वर्ग-५ अध्ययन-२ से ८ | [२१] उस काल और उस समय में द्वारका नगरी थी । उसके समीप रैवतक नाम का पर्वत था । उस पर्वत पर नन्दनवन उद्यान था । द्वारका नगरी में श्रीकृष्ण वासुदेव राजा थे। उन की गौरी नाम की महारानी थी, एक समय उस नन्दनवन उद्यान में भगवान् अरिष्टनेमि पधारे । कृष्ण वासुदेव भगवान् के दर्शन करने के लिए गये । जन-परिषद् भी गई। परिषद् लौट गई । कृष्ण वासुदेव भी अपने राज-भवन में लौट गये । तत्पश्चात् गौरी देवी पद्मावती रानी की तरह दीक्षित हुई यावत् सिद्ध हो गई । इसी तरह गांधारी, लक्ष्मण, सुसीमा, जाम्बवती, सत्यभामा और रुक्मिणी के भी छह अध्ययन पद्मावती के समान ही जानना । | वर्ग-५ अध्ययन-९, १० । [२२] उस काल उस समय में द्वारका नगरी के पास रैवतक नाम का पर्वत था, जहां एक नन्दन वन उद्यान था । वहां कृष्ण-वासुदेव राज्य करते थे । कृष्ण वासुदेव के पुत्र और रानी जाम्बवती देवी के आत्मज शाम्बकुमार थे जो सर्वांग सुन्दर थे । उन शाम्ब कुमार की मूलश्री नाम की भार्या थी । अत्यन्त सुन्दर एवं कोमलांगी थी । एक समय अरिष्टनेमि वहां पधारे । कृष्ण वासुदेव उनके दर्शनार्थ गये | मूलश्री देवी भी पद्मावती के समान प्रभु के दर्शनार्थ गई । विशेष में बोली-“हे देवानुप्रिय ! कृष्ण वासुदेव से पूछती हूँ यावत् सिद्ध हो गई । मूलश्री के ही समान मूलदत्ता का भी सारा वृत्तान्त जानना । वर्ग-५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (वर्ग-६) [२३] भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर ने छठे वर्ग के क्या भाव कहे हैं ? 'हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर ने अष्टम अंग अंतगड दशा के छठे वर्ग के सोलह अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं [२४] मकाई, किंकम, मुदगरपाणि, काश्यप, क्षेमक, धृतिधर, कैलाश, हरिचन्दन, वारत, सुदर्शन, पुण्यभद्र, सुमनभद्र, सुप्रतिष्ठित, मेघकुमार, अतिमुक्त कुमार और अलक्क कुमार । | वर्ग-६ अध्ययन-१, २ [२६] भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर ने छठे वर्ग के १६ अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल उस समय में राजगृह नगर था। वहां गुणशीलनामक चैत्य था । श्रेणिक राजा थे । वहां मकाई नामक गाथापति रहता था, जो अत्यन्त समृद्ध यावत् अपरिभूत था । उस काल उस समय में धर्म की आदि करने वाले श्रमण भगवान महावीर गुणशील उद्यान में पधारे । परिषद् दर्शनार्थ एवं धर्मोपदेश-श्रवणार्थ आई । मकाई गाथापति भी भगवतीसूत्र में वर्णित गंगदत्त के वर्णनानुसार अपने घर से निकला। धर्मोपदेश सुनकर वह विरक्त हो गया । घर आकर ज्येष्ठ पुत्र को घर का भार सौंपा और स्वयं हजार पुरुषों से उठाई जाने वाली शिविका में बैठकर श्रमणदीक्षा अंगीकार करने हेतु भगवान्
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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