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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद तब हरिणैगमेषी देव श्रीकृष्ण वासुदेव से इस प्रकार बोला - "हे देवानुप्रिय ! देवलोक का एक देव वहाँ का आयुष्य पूर्ण होने पर देवलोक से च्युत होकर आपके सहोदर छोटे भाई के रूप में जन्म लेगा और इस तरह आपका मनोरथ अवश्य पूर्ण होगा, पर वह बाल्यकाल बीतने पर, यावत् युवावस्था प्राप्त होने पर भगवान् श्रीअरिष्टनेमि के पास मुण्डित होकर दीक्षा ग्रहण करेगा ।" श्रीकृष्ण वासुदेव को उस देव ने दूसरी बार, तीसरी बार भी यही कहा और यह कहने के पश्चात् जिस दिशा से आया था उसी में लौट गया । इसके पश्चात् श्रीकृष्णवासुदेव पौषधशाला से निकले, देवकी माता के पास आये, आकर देवकी देवी का चरण वंदन किया, वे माता से इस प्रकार बोले- “हे माता ! मेरा एक सहोदर छोटा भाई होगा ।" ऐसा कह करके उन्होंने देवकी माता को मधुर एवं इष्ट, यावत् आश्वस्त करके जिस दिशा से प्रादुर्भूत हुए थे उसी दिशा में लौट गये । २४ तदनन्तर वह देवकी देवी अपने आवासगृह में शय्या पर सोई हुई थी । तब उसने स्वप्न में सिंह को देखा । वह इस प्रकार के उदार यावत् शोभावाले महास्वप्न को देखकर जागृत हुई । देवकी देवीने स्वप्न का सारा वृतांत अपने स्वामी को सुनाया । महाराजा वसुदेवने स्वप्न पाठको को बुलवाया और स्वप्नसंबंधि फल के विषय में पुछा - स्वप्न पाठकोने बताया कि इस स्वप्न के फल स्वरुप देवकी देवि को एक सुयोग्य पुण्यात्मा पुत्र रत्नकी प्राप्ति होगी । माता देवकी भी स्वप्न का फल सुनकर बहोत प्रसन्न हुई । वह देवकी देवी सुखपूर्वक अपने गर्भ का पालन करने लगी । तत्पश्चात् नव मास पूर्ण होने पर माता देवकी ने जातकुसुम समान, रक्तबन्धुजीवक समान, वीरवहुकी समान लाख के रंग समान, विकसीत पारिजात के पुष्प जैसा प्रातःकालिन सूर्य की लालिमा समान, कान्तियुक्त, सर्वजन नयनाभिराम सुकुमाल अंगोवाले यावत् स्वरुपवान् एवं गजतालु के समान रक्तवर्ण ऐसे सुकुमाल पुत्र को जन्म दिया । पुत्र का जन्म संस्कार मेघकुमार के समान जानना । " क्योंकि हमारा यह बालक गज के तालु के समान सुकोमल एवं सुन्दर है, अतः हमारे इस बालक का नाम गजसुकुमाल हो ।" इस प्रकार विचार कर उस बालक के माता-पिता ने उसका "गजसुकुमार" यह नाम रखा । शेष वर्णन मेघकुमार के समान समझना । क्रमशः गजसुकुमार भोग भोगने में समर्थ हो गया । उस द्वारका नगरी में सोमिल नामक एक ब्राह्मण रहता था, जो समृद्ध था और ऋग्वेद, यावत् ब्राह्मण और पारिव्राजक सम्बन्धी शास्त्रों में बड़ा निपुण था । उस सोमिल ब्राह्मण के सोमश्री नामकी ब्राह्मणी थी । सोमश्री सुकुमार एवं रूपलावण्य और यौवन से सम्पन्न थी । उस सोमिल ब्राह्मण की पुत्री और सोमश्री ब्राह्मणी की आत्मजा सोमा नाम की कन्या थी, जो सुकोमल यावत् बड़ी रूपवती थी । रूप, आकृति तथा लावण- सौन्दर्य की दृष्टि से उस में कोई दोष नहीं था, अतएव वह उत्तम तथा उत्तम शरीरखाली थी । वह सोमा कन्या अन्यदा किसी दिन स्नान कर यावत् वस्त्रालंकारों से विभूषित हो, बहुत सी कुब्जाओं, यावत् महत्तरिकाओं से घिरी हुई अपने घर से बाहर निकली । घर से बाहर निकल कर जहां राजमार्ग था, वहाँ आई और राजमार्ग में स्वर्ण की गेंद से खेल खेलने लगी । उस काल और उस समय में अरिहंत अरिष्टनेमि द्वारका नगरी में पधारे । परिषद् धर्मकथा सुनने को आई । उस समय कृष्ण वासुदेव भी भगवान् के शुभागमन के समाचार से अवगत हो, स्नान कर, यावत् वस्त्रालंकारों से विभूषित हो गजसुकुमाल कुमार के साथ हाथी
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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