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________________ २२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद नलकूबर के समान प्रतीत होंगे । भरतक्षेत्र में दूसरी कोई माता वैसे पुत्रों को जन्म नहीं देगी। पर वह कथन मिथ्या निकला, क्योंकि प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर हो रहा है कि अन्य माताओं ने भी ऐसे यावत् पुत्रों को जन्म दिया है । अतः मैं अरिहंत अरिष्टनेमि भगवान् की सेवा में जाऊं वंदन-नमस्कार करूं, और इस प्रकार के उक्तिवैपरीत्य के विषय में पूर्वी । ऐसा सोचकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर कहा-"शीघ्रगामी यानप्रवर उपस्थित किया । तब देवानन्दा ब्राह्मणी की तरह देवकी देवी भी उपासना करने लगी। तदनन्तर अरिहंत अरिष्टनेमि देवकी को सम्बोधित कर बोले-“हे देवकी ! क्या इन छह अनगारों को देखकर तुम्हारे मन में इस प्रकार का संकल्पित विचार उत्पन्न हुआ है कि पोलासपुर नगर में अतिमुक्त कुमार ने तुम्हें एक समान, नलकूबखत् आठ पुत्रों को जन्म देने का कथन किया था, यावत् वन्दन को निकली और निकलकर शीघ्रता से मेरे पास चली आई हो । देवकी देवी ! क्या यह बात सत्य है ? 'हाँ प्रभु, सत्य है ।' अरिहंत अरिष्टनेमि ने कहा-'देवानुप्रिये! उस काल उस समय में भद्दिलपुरनामक नगर में नाग गाथापति था । वह पूर्णतया सम्पन्न था । नागरिकों में उसकी बड़ी प्रतिष्ठा थी । उस नाग गाथापति की सुलसा नाम की भार्या थी । उस सुलसा गाथापत्नी को बाल्यावस्था में ही किसी निमित्तज्ञ ने कहा था-'यह बालिका निंदु होगी । तत्पश्चात् वह सुलसा बाल्यकाल से ही हरिणैगमेषी देव की भक्त बन गई । उसने हरिणैगमेषी देव की प्रतिमा बनवाई । प्रतिमा बनवा कर प्रतिदिन प्रातःकाल स्नान करके यावत् दुःस्वप्न निवारणार्थ प्रायश्चित्त कर आर्द्र साड़ी पहने हुए उसकी बहुमूल्य पुष्पों से अर्चना करती । पुष्पों द्वारा पूजा के पश्चात् घुटने टेककर पांचों अंग नमा कर प्रणाम करती, तदनन्तर आहार करती, निहार करती एवं अपनी दैनन्दिनी के अन्य कार्य करती । तत्पश्चात् उस सुलसा गाथापत्नी की उस भक्ति-बहुमानपूर्वक की गई शुश्रूषा से देव प्रसन्न हो गया । पश्चात् हरिणैगमेषी देव सुलसा गाथापत्नी को तथा तुम्हें दोनों को समकाल में ही ऋतुमती करता और तब तुम दोनों समकाल में ही गर्भ धारण करती, और समकाल में ही बालक को जन्म देतीं । प्रसवकाल में वह सुलसा गाथापत्नी मरे हुए बालक को जन्म देती । तब वह हरिणैगमेषी देव सुलसा पर अनुकंपा करने के लिये उसके मृत बालक को हाथों में लेता और लेकर तुम्हारे पास लाता । इधर उसी समय तुम भी नव मास का काल पूर्ण होने पर सुकुमार बालक को जन्म देती । हे देवानुप्रिये ! जो तुम्हारे पुत्र होते उनको हरिणैगमेषी देव तुम्हारे पास से अपने दोनों हाथों में ग्रहण करता और उन्हें ग्रहण कर सुलसा गाथापत्नी के पास लाकर रख देता । अतः वास्तव में हे देवकी ! ये तुम्हारे ही पुत्र हैं, सुलसा गाथापत्नी के पुत्र नहीं हैं ।' तदनन्तर देवकी देवी ने अरिहंत अरिष्टनेमि भगवान् के पास से उक्त वृत्तान्त को सुनकर और उस पर चिन्तन कर हृष्ट-तुष्ट यावत् प्रफुल्लहृदया होकर अरिष्टनेमि भगवान् को वंदन नमस्कार किया । वे छहों मुनि जहाँ विराजमान थे वहाँ आकर उन छहों मुनियों को वंदना नमस्कार करती है । उन अनगारों को देखकर पुत्र-प्रेम के कारण उसके स्तनों से दूध झरने लगा । हर्ष के कारण लोचन प्रफुल्लित हो उठे, कंचुकी के बन्धन टूटने लगे, भुजाओं के आभूषण तंग हो गये, उसकी रोमावली मेघधारा से अभिताडित हुए कदम्ब पुष्प की भाँति खिल उठी । उन छहों मुनियों को निर्निमेष दृष्टि से चिरकाल तक निरखती ही रही । तत्पश्चात्
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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