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________________ १७० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद बिराजित हों, मुझे यह समाचार निवेदित करना । यों कहकर राजा ने वार्तानिवेदक को वहाँ से विदा किया । [१३] तत्पश्चात् अगले दिन रात बीत जाने पर, प्रभात हो जाने पर, नीले तथा अन्य कमलों के सुहावने रूप में खिल जाने पर, उज्ज्वल प्रभायुक्त एवं लाल अशोक, पलाश, तोते की चोंच, धुंघची के आधे भाग के सदृश लालिमा लिये हए, कमलवन को विकसित करने वाले, सहस्रकिरणयुक्त, दिन के प्रादुर्भावक सूर्य के उदित होने पर, अपने तेज से उद्दीप्त होने पर श्रमण भगवान् महावीर, जहाँ चम्पा नगरी थी, जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ पधारे । यथाप्रतिरूप आवास ग्रहण कर संयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए विराजे । [१४] तब श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी बहुत से श्रमण संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे । उनमें अनेक ऐसे थे, जो उग्र, भोग, राजन्य, ज्ञात, कुरुवंशीय, क्षत्रि, सुभट, योद्धा, सेनापति, प्रशास्ता, सेठ, इभ्य, इन इन वर्गों में से दीक्षित हुए थे । और भी बहुत से उत्तम जाति, उत्तम कुल, सुन्दररूप, विनय, विज्ञान, वर्ण, लावण्य, विक्रम, सौभाग्य तथा कान्ति से सुशोभित, विपुल धन धान्य के संग्रह और पारिवारिक सुखसमृद्धि से युक्त, राजा से प्राप्त अतिशय वैभव सुख आदि से युक्त इच्छित भोगप्राप्त तथा सुख से लालित-पालित थे, जिन्होंने सांसारिक भोगों के सुख को किंपाक फल के सदृश असार, जीवन को जल के बुलबुले तथा कुश के सिरे पर स्थित जल की बूंद की तरह चंचल जानकार सांसारिक अस्थिर पदार्थों को वस्त्र पर लगी हुई रज के समान झाड़ कर, हिरण्य यावत् सुवर्ण परित्याग कर, श्रमण जीवन में दीक्षित हुए । कइयों को दीक्षित हुए आधा महीना, कइयों को एक महीना, दो महीने यावत् ग्यारह महीने हुए थे, कइयों को एक वर्ष, कइयों को दो वर्ष, कइयों को तीन वर्ष तथा कईयों को अनेक वर्ष हुए थे । [१५] उस समय श्रमण भघवान् महावीर के अन्तेवासी बहुत से निर्ग्रन्थ संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे । उनमें कई मतिज्ञानी यावत् केवलज्ञानी थे । कई मनोबली, वचनबली, तथा कायबली थे । कई मन से, कई वचन से, कई शरीर द्वारा अपकार व उपकार करने में समर्थ थे । कई खेलौषधिप्राप्त । कई जल्लौषधिप्राप्त थे । कई ऐसे थे, जिनके बाल, नाखून, रोम, मल आदि सभी औषधिरूप थे-कई कोष्ठबुद्धि, कई बीजबुद्धि, कई पटबुद्धि, कई पदानुसारी, बुद्धि-लिये हुए थे । कई संभिन्नश्रोता, कई क्षीरास्रव, कई मध्वास्रव, कई सर्पि-आस्रव-थे, कई अक्षीणमहानसिक लब्धिवाले थे । कई ऋजमति तथा कई विपूलमति मनःपर्यवज्ञान के धारक थे । कई विकर्वणा । कई चारण, कई विद्याधरप्रज्ञप्ति । कई आकाशातिपाती-समर्थ थे । कई कनकावली, कई एकावली, कई लघु-सिंह-निष्क्रीडित, तथा कई महासिंहनिष्क्रीडित तप करने में संलग्न थे । कई भद्रप्रतिमा, महाभद्रप्रतिमा, सर्वतोभद्रप्रतिमा तथा आयंबिल वर्द्धमान तप करते थे । कई एकमासिक भिक्षुप्रतिमा, यावत् साप्तमासिक भिक्षुप्रतिमा ग्रहण किये हुए थे । कई प्रथम सप्तरात्रिन्दिवा यावत् कई तृतीय सप्तरात्रिन्दिवा भिक्षुप्रतिमा के धारक थे । कई एक रातदिन की भिक्षुप्रतिमा ग्रहण किये हुए थे । कई सप्तसप्तमिका, कई अष्टअष्टमिका, कई नवनवमिका, कई दशदशमिकाभिक्षुप्रतिमा के धारक थे । कई लघुमोकप्रतिमा, कई यवमध्यचन्द्रप्रतिमा तथा कई वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा के धारक थे । [१६] तब श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी बहुत से स्थविर, भगवान्, जातिसम्पन्न, कुलसम्पन्न, बल-सम्पन्न, रूप-सम्पन्न, विनय-सम्पन्न, ज्ञान-सम्पन्न, दर्शन-सम्पन्न, चारित्र
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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