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________________ १४४ आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद निकाल कर अदीनशत्रु राजा के पास रख दिया और कहा-'हे स्वामिन् ! विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या मल्ली का उसी के अनुरूप यह चित्र मैंने कुछ आकार, भाव और प्रतिबिम्ब के रूप में चित्रित किया है । विदेहराज की श्रेष्ठ कुमारी मल्ली का हूबहू रूप तो कोई देव, भी चित्रित नहीं कर सकता | चित्र को देखकर हर्ष उत्पन्न होने के कारण अदीनशत्रु राजा ने दूत को बुलाकर कहा-यावत् दूत मिथिला जाने के लिए खाना हो गया । [१२] उस काल और उस समय में पंचाल नामक जनपद में काम्पिल्यपुर नामक नगर था । वहाँ जितशत्रु नामक राजा था, वही पंचाल देश का अधपिति था । उस जितशत्रु राजा के अन्तःपुर में एक हजार रानियाँ थीं । मिथिला नगरी में चोक्खा नामक पब्रिाजिका रहती था । मिथिला नगरी में बहुत-से राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि के सामने दानधर्म, शौचधर्म, और तीर्थस्नान का कथन करती,प्रज्ञापना करती, प्ररूपण करती और उपदेश करती हुई रहती थी । एक बार किसी समय वह चोक्खा पब्रिाजिका त्रिदण्ड, कुंडिका यावत् धातु से रंगे वस्त्र लेकर पब्रिाजिकाओं के मठ से बाहर निकली । थोड़ी पब्रिाजिकाओं से घिरी हुई मिथिला राजधानी के मध्य में होकरकुम्भ राजा का भवन था, जहाँ कन्याओं का अन्तःपुर था और जहाँ विदेह की उत्तम राजकन्या मल्ली थी, वहाँ आई । भूमि पर पानी छिड़का, उस पर डाभ बिछाया और उसपर आसन रख कर बैठी । विदेहवर राजकन्या मल्ली के सामने दानधर्म, शौचधर्म, तीर्थस्नान का उपदेश देती हुई विचरने लगी-उपदेश देने लगी। तब विदेहराजवरकन्या मल्ली ने चोक्खा पब्रिाजिका से पूछा-'चोक्खा ! तुम्हारे धर्म का मूल क्या कहा गया है ?' तब चोक्खा पब्रिाजिका ने उत्तर दिया-'देवानुप्रिय ! मैं शौचमूलक धर्म का उपदेश करती हूँ । हमारे मत में जो कोई भी वस्तु अशुचि होती है, उसे जल से और मिट्टी से शुद्ध किया जाता हैं,यावत् इस धर्म का पालन करने से हम निर्विध्न स्वर्ग जाते हैं । तत्पश्चात् विदेहराजवरकन्या मल्ली ने चोक्खा पब्रिाजिका से कहा-'चोक्खा ! जैसे कोई अमुक नामधारी पुरुष रुधिर से लिप्त वस्त्र को रुधिर से ही धोवे, तो हे चोक्खा ! उस रुधिरलिप्त और रुधिर से ही धोये जानेवाले वस्त्र की कुछ शुद्धि होती है ?' पब्रिाजिका ने उत्तर दिया-'नहीं, यह अर्थ समर्थ नहीं । मल्ली ने कहा-'इसी प्रकार चोक्खा ! तुम्हारे मत में प्राणातिपात से यावत् मिथ्यादर्शनशल्य से कोई शुद्धि नहीं है, जैसे रुधिर से लिप्त और रुधिर से ही धोये जानेवाले वस्त्र की कोई शुद्धि नहीं होती । ___ तत्पश्चात् विदेहराजवरकन्या मल्ली के ऐसा कहने पर उस चोक्खा पब्रिाजिका को शंका उत्पन्न हुई, कांक्षा, हुई और विचिकित्सा हुई और वह भेद को प्राप्त हुई अर्थात् उसने मन में तर्क-वितर्क होने लगा । वह मल्ली को कुछ भी उत्तर देने में समर्थ नहीं हो सकी, अतएव मौन रह गई । तत्पश्चात् मल्ली की बहुत-सी दासियां चोक्खा पब्रिाजिका की हीलना करने लगी, मन से निन्दा करने लगीं, खिंसा करने लगीं, गर्हा कितनीक दासियाँ उसे क्रोधित करने लगी, कोई कोई मुँह मटकाने लगीं, उपहास तर्जना ताड़ना करके उसे बाहर कर दिया । तत्पश्चात् विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली की दासियों द्वारा यावत् गर्दा की गई और अवहेलना की गई वह चोक्खा एकदम क्रुद्ध हो गई और क्रोध से मिसमिसाती हुई विदेहराजवरकन्या मल्ली के प्रति द्वेष को प्राप्त हुई । उसने अपना उठाया और कन्याओं के अन्तःपुर से निकल गई । वहाँ से निकलकर पब्रिाजिकाओं के साथ जहाँ पंल जनपद था, जहाँ कम्पिल्यपुर नगर था वहाँ
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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