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________________ ज्ञाताधर्मकथा-१/-/८/९१ १४३ तत्पश्चात् रटते हुए मल्लमदिन को देख कर धाय माता ने कहा- 'हे पुत्र ! तुम लज्जित, व्रीडित और व्यर्दित होकर धीरे-धीरे हट क्यों रहे हो ?' तब मल्लदिन ने धाय मातासे इस प्रकार कहा- 'माता ! मेरी गुरु और देवता के समान ज्येष्ठ भगिनी के, जिससे मुझे लज्जित होना चाहिए, सामने, चित्रकारों की बनाई इस सभा में प्रवेश करना क्या योग्य है ?' धाय माता मल्लदिन कुमार से इस प्रकार कहा- 'हे पुत्र ! निश्चय ही यह साक्षात् विदेह की उत्तम कुमारी मल्ली नहीं है किन्तु चित्रकार ने उसके अनुरूप चित्रित की है तब मल्लदिन कुमार धाय माता के इस कथन को सुन कर और हृदय में धारण करके एकदम क्रुद्ध हो उठा और बोला- 'कौन है वह चित्रकार मौच की इच्छा करनेवाला, यावत् जिसने गुरु और देवता के समान मेरी ज्येष्ठ भगिनी का यावत् यह चित्र बनाया है ? इस प्रकार कह कर उसने चित्रकार का वध करने आज्ञा दे दी । तत्पश्चात् चित्रकारों की वह श्रेणी इस कथा - वृत्तान्त को सुनकर और समझ कर जहाँ मल्लदिन्न कुमार था, वहाँ आई । आकर दोनों हाथ जोड़ कर यावत् मस्तक पर अंजलि करके कुमार को वधाया । वधा करइस प्रकार कहा - 'स्वामिन् ! निश्चय ही उस चित्रकार को इस प्रकार की चित्रकारलब्धि लब्ख हुई, प्राप्त हुई और अभ्यास में आ है कि वह किसी द्विपद आदि के एक अवयव को देखता है, यावत् वह उसका वैसा ही पूरा रूप बना देता है । अतएव हे स्वामिन् ! आप उस चित्रकार के वध की आज्ञा मत दीजिए । हे स्वामिन् ! आप उस चित्रकार को कोई दूसरा योग्य दंड दे दीजिए । तत्पश्चात् मल्लदिन ने उस चित्रकार के संडासक छेदन करवा दिया और उसे देश- निर्वासन की आज्ञा दे दी । तब मल्लदिन के द्वारा दे - निर्वासन की आज्ञा पाया हुआ वह चित्रकार अपनं भांड, पात्र और उपकरण आदि लेकर मिथिला नगरी से निकला । विदेह जनपद के मध्य में, होकर जहाँ हस्तिनापुर नगर था, जहाँ कुरुनामक जनपद था और जहाँ अदीनशत्रु नामक राजा था, वहाँ आया । उसने अपना भांड आदि रखा । रख कर चित्रफलक ठीक किया । विदेह ही श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली के पैर के अंगूठे के आधार पर उसका समग्र रूप चित्रित किया । चित्रफलक अपनी काँख में दबा लिया । फिर महान् अर्थ वाला यावत् राजा के योग्य बहुमूल्य उपहार ग्रहण किया । ग्रहण करके हस्तिनापुर नगर के मध्य में होकर अदीनशत्रु राजा के पास आया । दोनों हाथ जोड़ कर उसे वधाया और उपहार उसके सामने रख दिया । फिर चित्रकार ने कहा- 'स्वामिन् ! मिथिला राजधानी में कुंभ राजा के पुत्र और प्रभावती देवी के आत्मज मल्लदिन कुमार ने मुझे देशनिकाले की आज्ञा दी, इस कारण मैं सीधा यहाँ आया हूँ । हे स्वामिन् ! आपकी बाहुओं की छाया से परिगृहीत होकर यावत् मैं यहाँ बसना चाहता हूँ ।' तत्पश्चात् अदीनशत्रु राजा ने चित्रकारपुत्र से इस प्रकार कहा - 'देवानुप्रिय ! मल्लदिन्न कुमार ने तुम्हें किस कारण देश- निर्वासन की आज्ञा दी ?' चित्रकारपुत्र अदीनशत्रु राजा से कहा - 'हे स्वामिन् ! मल्लदिन कुमार ने एक बार किसी समय चित्रकारों की श्रेणी को बुला कर इस प्रकार कहा था- 'हे देवानुप्रियों ! तुम मेरी चित्रसभा को चित्रित करो;' यावत् कुमार ने मेरा संडासक कटवा कर देश- निर्वासन की आज्ञा दे दी । तत्पश्चात् अदीनशत्रु राजा ने उस चित्रकार से कहा- देवानुप्रिय ! तुमने मल्ली कुमारी का उसके अनुरूप चित्र कैसा बनाया था ? तब चित्रकार ने अपनी काँख में से चित्रफलक
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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