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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद हस्तिनापुर नगर में शिव राजा था । वह महाहिमवान् पर्वत के समान श्रेष्ठ था, इत्यादि । शिव राजा की धारिणी देवी थी | उसके हाथ-पैर अतिसुकुमाल थे, इत्यादि । शिव राजा का पुत्र और धारिणी रानी का अंगजात 'शिवभद्र' कुमार था । उसके हाथ-पैर अत्यन्त सुकुमाल थे । कुमार का वर्णन राजप्रश्नीय सूत्र में कथित सूर्यकान्त राजकुमार के समान यावत् वह राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोश, कठोर, पुर, अन्तःपुर और जनपद का स्वयमेव निरीक्षण करता हुआ रहता था । तदनन्तर एक दिन राजा शिव को रात्रि के पिछले पहर में राज्य की धुरा-का विचार करते हुए ऐसा अध्यवसाय उत्पन्न हुआ कि यह मेरे पूर्व-पुण्यों का प्रभाव है, इत्यादि तामलि-तापस के वृत्तान्त के अनुसार विचार हुआ-यावत् मैं पुत्र, पशु, राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोष, कोष्ठागार, पुर और अन्तःपुर इत्यादि से वृद्धि को प्राप्त हो रहा हूँ । प्रचुर धन, कनक, रत्न यावत् सारभूत द्रव्य द्वारा अतीव अभिवृद्धि पा रहा हूँ । तो क्या मैं पूर्वपुण्यों के फलस्वरूप यावत् एकान्तसुख का उपयोग करता हुआ विचरण करूँ ? अतः अब मेरे लिये यही श्रेयस्कर है कि जब तक मैं हिरण्य आदि से वृद्धि को प्राप्त हो रहा हूँ, यावत् जब तक सामन्त राजा आदि भी मेरे वश में हैं तब तक कल प्रभात होते ही जाज्वल्यमान सूर्योदय होने पर मैं बहुत-सी लोढ़ी, लोहे की कडाही, कुडछी और ताम्बे के बहुत से तापसोचित उपकरण बनवाऊँ और शिवभद्र कुमार को राज्य पर स्थापित करके और पूर्वोक्त बहुत-से लोहे एवं ताम्बे के तापसोचित भांड-उपकरण लेकर, उन तापसों के पास जाऊँ जो ये गंगातट पर वानप्रस्थ तापस हैं, जैसे कि अग्निहोत्री, पोतिक कौत्रिक याज्ञिक, श्राद्धी, खप्परधारी, कुण्डिकाधारी श्रमण, दन्त-प्रक्षालक, उन्मजक, सम्मज्जक, निमज्जक, सम्प्रक्षालक, ऊर्ध्वकण्डुक, अधःकण्डुक, दक्षिणकूलक, उत्तरकूलक, शंखधमक, कूलधमक, मृगलुब्धक, हस्तीतापस, जल से स्नान किये बिना भोजन नहीं करने वाले, पानी में रहने वाले, वायु में रहने वाले, पट-मण्डप में रहने वाले, बिलवासी, वृक्षमूलवासी, जलभक्षक, वायुभक्षक, शैवालभक्षक, मूलाहारी, कन्दाहारी, त्वचाहारी, पत्राहारी, पुष्पाहारी, फलाहारी, बीजाहारी, सड़ कर टूटे या गिरे हुए कन्द, मूल, छाल, पत्ते, फूल और फल खाने वाले, दण्ड ऊँचा रखकर चलने वाले, वृक्षमूलनिवासी, मांडलिक, वनवासी, दिशाप्रोक्षी, आतापना से पंचाग्नि ताप तपने वाले इत्यादि औपपातिक सूत्र अनुसार यावत् जो अपने शरीर को काष्ठ-सा बना देते हैं । उनमें से जो तापस दिशाप्रोक्षक हैं, उनके पास मुण्डित होकर मैं दिक्प्रोक्षक-तापस-रूप प्रव्रज्या अंगीकार करूँ। प्रव्रजित होने पर इस प्रकार का अभिग्रह ग्रहण करूँ कि यावज्जीवन निरन्तर छठ-छठ की तपस्या द्वारा दिक्चक्रवाल तपःकर्म करके दोनों भुजाएँ ऊँची रखकर रहना मेरे लिये कल्पनीय है। फिर दूसरे दिन प्रातःकाल सूर्योदय होने पर अनेक प्रकार की लोढ़ियाँ, लोहे की कड़ाही आदि तापसोचित भण्डोपकरण तैयार कराके कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा-हे शीघ्र ही हस्तिनापुर नगर के बाहर और भीतर जल का छिड़काव करके स्वच्छ, कराओ, इत्यादि; यावत् कौटुम्बिक पुरुषों ने राजा की आज्ञानुसार कार्य करवा कर निवेदन किया । उसके पश्चात् उस शिव राजा ने दूसरी बार भी कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और फिर उनसे कहा-'हे देवानुप्रियो ! शिवभद्रकुमार के महार्थ, महामूल्यवान् और महोत्सव योग्य विपुल राज्याभिषेक की शीघ्र तैयारी करो ।' तदनन्तर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने राजा के आदेशानुसार राज्याभिषेक की तैयारी की । यह हो जाने पर शिव राजा ने अनेक गणनायक, दण्डनायक यावत् सन्धिपाल आदि राज्यपुरुष-परिवार से युक्त होकर शिवभद्र कुमार को पूर्वदिशा की ओर मुख करके
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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