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________________ भगक्ती-१६/-/६/६७८ १४५ भगवन् ! जीव संवृत हैं, असंवृत हैं अथवा संवृतासंवृत हैं ? गौतम ! तीनो ही | सुप्त, (जागृत और सुप्त-जागृत) जीवों के दण्डक समान इनका भी कहना। भगवन् ! स्वप्न कितने प्रकार के होते हैं ? गौतम ! बयालीस प्रकार | भगवन् ! महास्वप्न कितने प्रकार के कहे गये हैं ? गौतम तीस प्रकार के । भगवन् ! सभी स्वप्न कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! बहत्तर कहे गए हैं । भगवन् ! तीर्थंकर का जीव जब गर्भ में आता है, तब तीर्थंकर की माताएँ कितने महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं ? गौतम ! इन तीस महास्वप्नों में से चौदह महास्वप्न देख कर जागृत होती हैं, यथा-गज, वृषभ, सिंह यावत् अग्नि | भगवन् ! जब चक्रवर्ती की जीव गर्भ में आता है, तब चक्रवर्ती की माताएँ कितने महास्वप्नों को देख कर जागृत होती हैं ? गौतम इन तीस महास्वप्नों में से तीर्थंकर की माताओं के समान चौदह महास्वप्नों को देख कर जागृत होती हैं, यथा-गज यावत् अग्नि । भगवन् ! वासुदेव का जीव जब गर्भ में आता है, तब वासुदेव की माताएँ कितने महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं ? गौतम ! इन चौदह महास्वप्नों में से कोई भी सात महास्वप्न देख कर जागृत होती हैं । भगवन् ! बलदेव का जीव जब गर्भ में आता है, तब बलदेव की माताएँ कितने स्वप्न...इत्यादि पृच्छा ? गौतम ! इन चौदह महास्वप्नों में से किन्हीं चार महास्वप्नों को देख कर जागृत होती हैं । भगवन् ! माण्डलिक का जीव गर्भ में आने पर माण्डलिक की माताएँ...इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! इन में से किसी एक महास्वप्न को देख कर जागृत होती [६७९] श्रमण भगवान् महावीर अपने छयस्थ काल की अन्तिम रात्रि में इन दस महास्वप्नों को देखकर जागृत हुए । (१) एक महान् घोर और तेजस्वी रूप वाले ताइवृक्ष के समान लम्बे पिशाच को स्वप्न में पराजित किया । (२) श्वेत पाँखों वाले एक महान् पुंस्कोकिल का स्वप्न । (३) चित्र-विचित्र पंखों वाले पुंस्कोकिल को स्वप्न । (४) स्वप्न में सर्वरत्नमय एक महान् मालायुगल को देखा । (५) स्वप्न में श्वेतवर्ण के एक महान् गोवर्ग को देखा प्रतिबुद्ध हुए । (६) चारों ओर से पुष्पित एक महान् पद्मसरोवर का स्वप्न (७) सहस्रों तरंगों और कलोलों से सुशोभित एक महासागर को अपनी भुजाओं से तिरे, । (८) अपने तेज से जाज्वल्यमान एक महान् सूर्य का स्वप्न । (९) एक महान् मानुषोत्तर पर्वत को नील वैडूर्य मणि के समान अपने अन्तर भाग में चारों ओर स आवेष्टित-परिवेष्टित देखा। (१०) महान् मन्दर पर्वत की मन्दर-चूलिका पर श्रेष्ट सिंहासन पर बैठे हुए अपने आपको देखकर जागृत हुए । श्रमण भगवान् महावीर ने प्रथम स्वप्न में जो एक महान् भयंकर और तेजस्वी रूप वाले ताड़वृक्षसम लम्बे पिशाच को पराजित किया हुआ देखा, उसका फल यह हुआ कि श्रमण भगवान् महावीर ने मोहनीय कर्म को समूल नष्ट किया । दूसरे स्वप्न में श्वेत पंख वाले एक महान् पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि भगवान् महावीर शुक्लध्यान प्राप्त करके विचरे । तीसरे स्वप्न में चित्र-विचित्र पंखों वाले एक पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह हुआ कि श्रमण भगवान् महावीर ने स्वसमय-परसमय के विविध-विचार-युक्त द्वादशांग गणिपिटक का कथन किया, प्रज्ञप्त किया, प्ररूपित किया, दिखलाया, निदर्शित किया और उपदर्शित किया । यथा-आचार सूत्रकृत यावत् दृष्टिवाद । चौथे स्वप्न में एक सर्वरत्नमय महान् मालायुगल को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर ने दो 14/10/
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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