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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद ली, तब ईशानेन्द्र ने उस दिव्य देव ऋद्धि यावत् छोड़ी हुई तेजोलेश्या को वापस खींच ली । हे गौतम ! तब से बलिचंचा-राजधानी-निवासी वे बहुत-से असुरकुमार देव और देवीवृन्द देवेन्द्र देवराज ईशान का आदर करते हैं यावत् उसकी पर्युपासना करते हैं । देवेन्द्र देवराज ईशान की आज्ञा और सेवा में, तथा आदेश और निर्देश में रहते हैं । हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज ईशान ने वह दिव्य देवऋद्धि यावत् इस प्रकार लब्ध, प्राप्त और अभिसमन्वागत की है । भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! दो सागरोपम से कुछ अधिक है | भगवन ! देवेन्द्र देवराज ईशान देव आयुष्य का क्षय होने पर, स्थितिकाल पूर्ण होने पर देवलोक से च्युत होकर कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा यावत् समस्त दुःखों का अन्त करेगा ।। [१६४] भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र के विमानों से देवेन्द्र देवराज ईशान के विमान कुछ (थोड़-से) उच्चतर-ऊंचे हैं, कुछ उन्नततर हैं ? अथवा देवेन्द्र देवराज ईशान के विमानों से देवेन्द्र देवराज शक्र के विमान कुछ नीचे हैं, कुछ निम्नतर हैं ? हाँ, गौतम ! यह इसी प्रकार है । यहाँ ऊपर का सारा सत्रपाठ (उत्तर के रूप में) समझ लेना चाहिए । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! जैसे किसी हथेली का एक भाग (देश) कुछ ऊंचा और उन्नततर होता है, तथा एक भाग कुछ नीचा और निम्नतर होता है, इसी तरह शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र के विमानों के सम्बन्ध में समझना चाहिए । [१६५] भगवन ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र. देवेन्द्र देवराज ईशान के पास प्रकट हो (जाने) में समर्थ हैं ? हाँ गौतम ! शक्रेन्द्र, ईशानेन्द्र के पास जाने में समर्थ है । भगवन् ! क्या वह आदर करता हुआ जाता है, या अनादर करता हुआ जाता है ? हे गौतम ! वह ईशानेन्द्र का आदर करता हुआ जाता है, किन्तु अनादर करता हुआ नहीं ।। भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान, क्या देवेन्द्र देवराज शक्र के पास प्रकट होने (जाने) में समर्थ है ? हाँ गौतम ! है । भगवन् ! क्या वह आदर करता हुआ जाता है, या अनादर करता हुआ जाता है ? गौतम ! वह आदर करता हुआ भी जा सकता है, और अनादर करता हुआ भी जा सकता है । भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, देवेन्द्र देवराज ईशान के समक्ष (चारों दिशाओं में) तथा चारों कोनों में देखने में समर्थ है ? गौतम ! 'प्रादुर्भूत होने' के समान देखने के सम्बन्ध में भी दो आलापक कहने चाहिए ।' भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, देवेन्द्र देवराज ईशान के साथ आलाप या संलाप करने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! वह आलाप-संलाप करने में समर्थ है । पास जाने के दो आलापक के समान आलाप-संलाप के भी दो आलापक कहने चाहिए । [१६६] भगवन् ! उन देवेन्द्र देवराज शक्र और देवेन्द्र देवराज ईशान के बीच में परस्पर कोई कृत्य और करणीय समुत्पन्न होते हैं ? हाँ, गौतम ! समुत्पन्न होते हैं | ___ भगवन् ! जब इन दोनों के कोई कृत्य या करणीय होते हैं, तब वे कैसे व्यवहार (कार्य) करते हैं ? गौतम ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र को कार्य होता है, तब वह देवेन्द्र देवराज ईशान के समीप प्रकट होता है, और जब देवेन्द्र देवराज ईशान को कार्य होता है, तब वह देवेन्द्र देवराज शक्र के निकट जाता है । उनके परस्पर सम्बोधित करने का तरीका यह है'ऐसा है, हे दक्षिणार्द्ध लोकाधिपति देवेन्द्र देवराज शक्र !' 'ऐसा है, हे उत्तरार्द्ध लोकाधिपति
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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