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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद कहने चाहिए; यावत् 'मेरे मत से अस्तित्व, अस्तित्व में गमनीय है । [४१] 'भगवन् ! जैसे आपके मत में यहाँ (स्वात्मा में) गमनीय है, उसी प्रकार इह (परात्मा में भी) गमनीय है, जैसे आपके मत में इह (परात्मा में) गमनीय है, उसी प्रकार यहाँ (स्वात्मा में) भी गमनीय है ?' हाँ, गौतम ! जैसे मेरे मत में यहाँ (स्वात्मा में) गमनीय है, यावत् उसी प्रकार यहाँ (स्वात्मा में) गमनीय है । [४२] भगवन् ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म बांधते हैं ? हाँ, गौतम ! बांधते हैं | भगवन् ! जीव कांक्षामोहनीय कर्म किस प्रकार बांधते हैं ? गौतम ! प्रमाद के कारण और योग के निमित्त से (जीव कांक्षामोहनीय कर्म बांधते हैं) । 'भगवन ! प्रमाद किससे उत्पन्न होता है ?' गौतम ! प्रमाद, योग से उत्पन्न होता है । 'भगवन् ! योग किससे उत्पन्न होता है ?' गौतम ! योग, वीर्य से उत्पन्न होता है । 'भगवन् ! वीर्य किससे उत्पन्न होता है ?' गौतम ! वीर्य शरीर से उत्पन्न होता है । 'भगवन् ! शरीर किससे उत्पन्न होता है ?' गौतम ! शरीर जीव से उत्पन्न होता है । और ऐसा होने में जीव का उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम होता है । [४३] भगवन् ! क्या जीव अपने आपसे ही उस (कांक्षामोहनीय कर्म) की उदीरणा करता है, अपने आप से ही उसकी गर्दा करता है और अपने आप से ही उसका संवर करता है ? हाँ, गौतम ! जीव अपने आप से ही उसकी उदीरणा, गर्हा और संवर करता है । . भगवन् ! वह जो अपने आप से ही उसकी उदीरणा करता है, गर्दा करता है और संवर करता है, तो क्या उदीर्ण की उदीरणा करता है ?; अनुदीर्ण की उदीरणा करता है ?; या अनुदीर्ण उदीरणाभविक कर्म की उदीरणा करता है ? अथवा उदयानन्तर पश्चात्कृत कर्म की उदीरणा करता है ? गौतम ! उदीर्ण की उदीरणा नहीं करता, अनुदीर्ण की भी उदीरणा नहीं करता, तथा उदयानन्तर पश्चात्कृत कर्म की भी उदीरणा नहीं करता, किन्तु अनुदीर्णउदीरणाभविक कर्म की उदीरणा करता है । भगवन् ! यदि जीव अनुदीर्ण-उदीरणाभविक की उदीरणा करता है, तो क्या उत्थान से, कर्म से, बल से, वीर्य से और पुरुषकार-पराक्रम से उदीरणा करता है, अथवा अनुत्थान से, अकर्म से, अबल से, अवीर्य से और अपुरुषकार-पराक्रम से उदीरणा करता है ? गौतम! वह अनुदीर्ण-उदीरणा-भविक कर्म की उदीरणा उत्थान से यावत् पुरुषकार-पराक्रम से करता है, अनुत्थान से, अकर्म से, यावत् अपुरुषकार-पराक्रम से उदीरणा नहीं करता । अतएव उत्थान है, कर्म है, बल है, वीर्य है और पुरुषकार पराक्रम है । ___भगवन् ! क्या वह अपने आप से ही (कांक्षा-मोहनीय कर्म का) उपशम करता है, अपने आप से ही गर्दा करता है और अपने आप से ही संवर करता है ? हाँ, गौतम ! यहाँ भी उसी प्रकार 'पूर्ववत्' कहना चाहिए । विशेषता यह है कि अनुदीर्ण का उपशम करता है, शेष तीनों विकल्पों का निषेध करना चाहिए । भगवन् ! जीव यदि अनुदीर्ण कर्म का उपशम करता है, तो क्या उत्थान से यावत् पुरुषकार-पराक्रम से करता है या अनुत्थान से यावत् अपुरुषकार-पराक्रम से करता है ?' गौतम ! पूर्ववत् जानना-यावत् पुरुषकार-पराक्रम से उपशम करता है । भगवन् क्या जीव अपने आप से ही वेदन करता है और गर्दा करता है ? गौतम !
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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