SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती-९/-/३१/४५० २४७ है, तो संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ में होता है । यदि तीन कषायों में होता है तो संज्वलन मान, माया और लोभ में, यदि दो कषायों में होता है तो संज्वलन माया और लोभ में और यदि एक कषाय में होता है तो एक संज्वलन लोभ में होता है | भंते ! उस अवधिज्ञानी के कितने अध्यवसाय बताए गए हैं ? गौतम ! उसके असंख्यात अध्यवसाय होते हैं । असोच्चा कवली कि तरह ‘सोचा कवली' के लिए उसे केवलज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न होता है, तक कहना चाहिए । भंते ! वह ‘सोचा केवली' केवलि-प्ररूपित धर्म कहते है, बतलाते है या प्ररूपित करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं । भगवन् ! वे सोच्चा केवली किसी को प्रव्रजित करते हैं या मुण्डित करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं | भगवन ! उन सोच्चा केवली के शिष्य किसी को प्रव्रजित करते हैं या मुण्डित करते हैं ? हाँ गौतम ! उनके शिष्य भी करते हैं । भगवन् ! क्या उन सोच्चा केवली के प्रशिष्य भी किसी को प्रव्रजित और मुण्डित करते हैं ? हाँ गौतम ! वे भी करते हैं । भगवन् ! वे सोच्चा कवली सिद्ध होते है, बुद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ? हाँ गौतम ! वे सिद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं । भंते ! क्या उन सोच्चा केवली के शिष्य भी, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं । भगवन् ! क्या उनके प्रशिष्य भी, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ? हाँ, करते हैं । भंते ! वे सोच्चा केवली ऊर्ध्वलोक में होते हैं, इत्यादि प्रश्न । हे गौतम ! असोच्चाकेवली के समान यहाँ भी अढाई द्वीप-समुद्र के एक भाग में होते हैं, तक कहना । - भगवन् ! वे सोच्चा कवली एक समय में कितने होते हैं ? गौतम ! वे एक समय में जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट एक सौ आठ होते हैं ? इसीलिए हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से यावत् कोई जीव केवलज्ञानकेवलदर्शन प्राप्त करता है और कोई नहीं करता । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । | शतक-९ उद्देशक-३२ | [४५१] उस काल, उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था । वहाँ धुतिपलाश नाम का चैत्य था | महावीर स्वामी पधारे, समवसरण लगा । परिषद् निकली । (भगवान् ने) धर्मोपदेश दिया । परिषद् वापिस लौट गई । उस काल उस समय में पापित्य गांगेय नामक अनगार थे । जहाँ श्रमण भगवान् महावीर थे, वहाँ वे आए और श्रमण भगवान् महावीर के न अतिनिकट और न अतिदूर खड़े रह कर उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर से इस प्रकार पूछा भगवन् ! नैरयिक सान्तर उत्पन्न होते हैं, या निरन्तर ? हे गांगेय ! सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी । भगवन् ! असुरकुमार सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी है । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? गांगेय ! पृथ्वीकायिक जीव सान्तर उत्पन्न नहीं होते किन्तु निरन्तर उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों तक जानना चाहिए । द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर वैमानिक देवों तक की उत्पत्ति के विषय में नैरयिकों के समान जानना चाहिए । [४५२] भगवन् ! नैरयिक जीव सान्तर उद्वर्तित होते हैं या निरन्तर ? गांगेय ! सान्तर
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy