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________________ भगवती-८/-/१/३८६ १९७ परिणत होता है, आहारकमिश्र-कायप्रयोगपरिणत होता है अथवा कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ? गौतम ! वह एक द्रव्य औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा यावत् वह कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है । भगवन् यदि एक द्रव्य औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, या द्वीन्द्रिय औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है अथवा यावत् पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ? गौतम ! वह एक द्रव्य एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा यावत् पञ्चेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है । भगवन् ! जो एक द्रव्य शरीर एकेन्द्रिय-औदारिक-शरीर-काय-प्रयोग-परिणत होता है तो क्या वह पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-काय-प्रयोग-परिणत होता है, अथवा यावत् वह वनस्पतिकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है । हे गौतम ! वह पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणतहोता है, अथवा यावत् वनस्पतिकायिकएकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है । भगवन् ! यदि वह एक द्रव्य पृथ्वीकायिकएकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, तो क्या वह सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय औदारिकशरीर कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा बादरपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीरकायप्रोगपरिणत होता है । गौतम ! वह सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होता है अथवा बादर-पृथ्वीकायिक । भगवन् ! यदि एक द्रव्य सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है तो क्या वह पर्याप्त-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा अपर्याप्त-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ? गौतम ! यह पर्याप्त-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत भी होता है, या वह अपर्याप्त-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत भी होता है । इसी प्रकार बादरपृथ्वीकायिक के विषय में भी समझ लेना चाहिए । इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक सभी के चार-चार भेद के विषय में कथन करना चाहिए । (किन्तु) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के दो-दो भेद-पर्याप्तक और अपर्याप्तक कहना चाहिए । भगवन ! यदि एक द्रव्य पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा मनुष्य-पंचेन्द्रियऔदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ? गौतम ! या तो वह तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियऔदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा वह मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होता है । भगवन् ! यदि एक द्रव्य तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरकायप्रयोग-परिणत होता है तो क्या वह जलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होता है, स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा खेचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ? गौतम ! वह जलचर, स्थलचर और खेचर, तीनों प्रकार के तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग से परिणत होता है, अतः खेचरों तक पूर्ववत् प्रत्येक के चार-चार भेदों कहना।। भगवन् ! यदि एक द्रव्य मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह सम्मूर्छिममनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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