SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद प्रयोग-परिणत के स्थान पर मिश्र-परिणत कहना । शेष वर्णन पूर्ववत् । यावत् जो पुद्गल पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक हैं; वे यावत् आयत-संस्थानरूप से भी परिणत हैं । [३८५] भगवन् ! विस्त्रसा-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के वर्णपरिणत, गन्धपरिणत, रसपरिणत, स्पर्शपरिणत और संस्थानपरिणत । जो पुद्गल वर्णपरिणत हैं, वे पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा-कृष्ण-वर्ण के रूप में परिणत यावत् शुक्ल वर्ण के रूप में परिणत पुद्गल । जो गन्ध-परिणत-पुद्गल हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-सुरभिगन्ध-परिणत और दुरभिगन्ध-परिणत-पुद्गल । इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र अनुसार वर्णन करना चाहिए, यावत् जो पुद्गल संस्थान से आयत-संस्थान-परिणत हैं, वे वर्ण से कृष्ण-वर्ण के रूप में भी परिणत हैं, यावत् रूक्ष-स्पर्शरूप में भी परिणत हैं । [३८६] गौतम ! एक द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होता है, मिश्रपरिणत होता है अथवा विस्त्रसापरिणत होता है ? गौतम ! एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, अथवा मिश्रपरिणत होता है, अथवा विस्त्रसापरिणत भी होता है । भगवन् ! यदि एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह मनःप्रयोगपरिणत होता है, वचन-प्रयोग-परिणत होता है, अथवा काय-प्रयोगपरिणत होता है ? गौतम ! वह मनःप्रयोगपरिणत होता है, या वचन-प्रयोग-परिणित होता है, अथवा काय-प्रयोगपरिणत होता है । भगवन् ! यदि एक द्रव्य मनःप्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह सत्यमनःप्रयोग-परिणत होता है, अथवा मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, या सत्य-मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, या असत्या-अमृषामनःप्रयोगपरिणत होता है ? गौतम ! वह सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है, अथवा मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, या सत्य-मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है या फिर असत्यअमृषामनःप्रयोग-परिणत होता है । भगवन् ! यदि एक द्रव्य सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह आरम्भ-सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है, अनारम्भ सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है, सारम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है, असारम्भ-सत्यमनःप्रयोगपरिणित होता है, समारम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है अथवा असारम्भ-सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है ? गौतम ! वह आरम्भ-सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है, यावत् असमारम्भ-सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है । भगवन् ! यदि एक द्रव्य मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह आरम्भमृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, अथवा यावत् असमारम्भ-मृषामनःप्रयोगपरिणत ? गौतम ! जिस प्रकार सत्यमनःप्रयोगपरिणत के विषय में कहा है, उसी प्रकार मृषामनःप्रयोगपरिणत के विषय में भी कहना । इसी प्रकार सत्य-मृषामनःप्रयोगपरिणत के विषय में भी तथा असत्यअमृषामनःप्रयोगपरिणत के विषय में भी कहना । भगवन् ! यदि एक द्रव्य वचनप्रयोगपरिणत होता है तो, क्या वह सत्य-वचन-प्रयोगपरिणत होता है, मृषा-वचनप्रयोगपरिणत होता है, सत्य-मृषा-वचनप्रयोगपरिणत होता है अथवा असत्य-अमृषा-वचनप्रयोगपरिणत होता है ? गौतम ! मनःप्रयोगपरिणत के समान वचन-प्रयोगपरिणत के विषय में भी वह असमारम्भ वचन-प्रयोगपरिणत भी होता है तक कहना । भावन् ! यदि एक द्रव्य कायप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होता है, औदारिकमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, वैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणत होता है, वैक्रियमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, आहारकशरीर-कायप्रयोग
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy