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________________ स्थान-४/२/३१६ ৩৩ संग्रह एक । [३१७] कितने चार हैं ? यथा-द्रव्य कितने हैं, मातृका पद कितने हैं, पर्याय कितने हैं और संग्रह कितने हैं ? [३१८] सर्व चार हैं । नाम सर्व,स्थापना सर्व, आदेश सर्व और निश्वशेष सर्व । [३१९] मानुषोत्तर पर्वत की चार दिशाओं में चार कूट हैं । यथा-रत्न, रत्नोच्चय, सर्वरत्न और रत्नसंचय । [३२०] जंबूद्वीप के भरत ऐवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी का सुषमसुषमाकाल चार क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम था । जंबूद्वीप के भरत ऐवत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी का सुषमसुषमा काल चार क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम था । जंबूद्वीप के भरत ऐवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी का सुषमसुषमाकाल चार क्रोडाक्रोडी सागरोपम होगा । . [३२१] जम्बूद्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर चार अकर्मभूमियां हैं ।यथाहेमवंत, हैरण्यवत, हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष । वृत्त वैताढ्य पर्वत चार हैं । यथा-शब्दापाति, विकटापाति, गंधापाति और माल्यवंत पर्याय । उन वृत्त वैताढ्य पर्वतों पर पल्योपमस्थितिवाले चार महर्धिक देव रहते हैं । यथास्वाति, प्रमास, अरुप और पद्य । जम्बूद्वीप में चार महाविदेह हैं. । यथा-पूर्वविदेह अपरविदेह, देवकुरु और उत्तरकुरु । सभी निषध और नीलवंत वर्षधरपर्वत चार सो योजन ऊँचे और चारसौं गाउ भूमि में गहरे हैं। जम्बूद्वीपवर्ती मेरुपर्वत के पूर्व में बहनेवाली सीता महानदी के उत्तर किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत हैं । यथा- चित्रकूट, पद्मकूट, नलिनकूट और एकशैल । जम्बूद्वीपवर्ती मेरुपर्वत के पूर्व में बहनेवाली सीता महानदी के दक्षिण किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत हैं । यथा-त्रिकूट, वैश्रमणकूट, अंजन और मातंजन | जम्बूद्वीपवर्ती मेरुपर्वत के पश्चिम में बहनेवाली सीता महानदी के दक्षिण किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत हैं । यथा-अंकावती, पद्मावती, आशिविष और सुखावह । जम्बूद्वीपवर्ती मेरुपर्वत के पश्चिम में बहनेवाली सीता महानदी के उत्तर किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत हैं । चन्द्रपर्वत, सूर्यपर्वत, देवपर्वत और नागपर्वत । जम्बूद्वीपवर्ती मेरुपर्वत के चार विदिशाओं में चार वक्षस्कार हैं । यथा-सोमनस, विद्युत्प्रभ, गंधमादन और माल्यवंत । जम्बूद्वीप के महाविदेह में जघन्य चार अरिहंत, चार चक्रवर्ती,चार बलदेव, चार वासुदेव उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे | जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत पर चार वन है । यथाभद्रसाल वन, नन्दन वन, सोमनस वन और पंडगवन ।। जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत पर पंडगवन में चार अभिषेक शिलाएँ है । यथा-पंडुकंबल शिला, अतिपंडुकंबल शिला, स्तकंबल शिला और अतिरकंतकंबल शिला । मेरुपर्वत की चूलिका ऊपर से चार सौ योजन चौड़ी है । ___ इसी प्रकार धातकी खंड द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में काल सूत्र से लेक यावतमेरुचूलिका पर्यन्त कहें । इसी प्रकार पुष्कार्ध द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी काल सूत्र से लेकर-यावत्-मेरु-चूलिका पर्यन्त कहें ।
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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