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________________ ७६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद मं उत्पन्न होता हैं । दारुस्तम्भ समान मान करनेवाला जीव मरकर मनुष्य योनि में उत्पन्न होता हैं । तिनिसलतास्तम्भ समान मान करनेवाला जीव मरकर देवयोनि में उत्पन्न होता हैं । वस्त्र चार प्रकार के हैं । यथा-कृमिरंग से रंगा हुआ, कीचड़ से रंगा हुआ, खंजन से रंगा हुआ, हरिद्रा से रंगा हुआ। इसी प्रकार लोभ चार प्रकार का है । यथा-कृमिरंग से रंगे हुए वस्त्र के समान, कीचड़ से रंगे हुए वस्त्र के समान, खंजन से रंगे हुए वस्त्र के समान । कृमिरंग से रंगे हुए वस्त्र के समान लोभ करनेवाला जीव मरकर नरक में उत्पन्न होता है । कीचड़ से रंगे हुए वस्त्र के समान लोभ करनेवाला जीव मरकर तिर्यंच में उत्पन्न होता हैं । खंजन से रंगे हुए वस्त्र के समान लोभ करनेवाला जीव मरकर मनुष्य में उत्पन्न होता हैं । हल्दी से रंगे हुए वस्त्र के समान लोभ करनेवाला जीव मरकर देवताओं में उत्पन्न होता हैं । [३१३] संसार चार प्रकार का है । यथा-नैरयिक संसार, तिर्यंच संसार, मानव संसार और देव संसार । आयु चार प्रकार का हैं । यथा-नैरयिकायु, तिर्यंचायु, मनुजायु, देवायु । भव चार प्रकार का हैं । यथा-नैरयिक भव, तिर्यंच भव, मानव भव और देवभव । [३१४] आहार चार प्रकार का हैं । यथा-अशन, पान, खादिम और स्वादिम । अथवा आहार चार प्रकार का है । यथा-उपस्करसंपन्न-हींग वगैरह से संस्कारहित आहार । उपस्कृत संपन्न-अग्निपक्क आहार, स्वभाव संपन्न-स्वतःपक्कआहार-द्राक्ष आदि, पर्युषित संपन्न-रात भर रखकर बनाया हुआ आहार-दहीबड़ा आदि। [३१५] बंध चार प्रकार के हैं । यथा-प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध । कर्मप्रकृतियों का बंध-प्रकृतिबंध है, कर्मप्रकृतियों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति का बंध-स्थितिबंध हैं । कर्मप्रकृतियों में तीव्र-मंद रस का बंध-रसबंध हैं । आत्मप्रदेशों के साथ शुभाशुभ विपाक वाले अनंतानंत कर्मप्रदेशों काबंध-प्रदेश बंध ।। उपक्रम चार प्रकार का है । यथा-बंधनोपक्रम, उदीरणोपक्रम, उपशमनोपक्रम और विपरिणानोपक्रम | बंधनोपक्रम चार प्रकार का हैं । यथा-प्रकृतिबंधनोपक्रम, स्थितिबंधनोपक्रम, अनुभागबंधनोपक्रम और प्रदेशबंधनोपक्रम । उदीरणोपक्रम चार प्रकार के हैं । यथाप्रकृतिउदीरणोपक्रम, स्थितिउदीरणोपक्रम, अनुभावउदीरणोपक्रम और प्रदेशउदीरणोपक्रम । उपशमनोपक्रम चार प्रकार का हैं । यथा-प्रकृतिउपशमनोपक्रम, स्थितिउपशमनोपक्रम, अनुभावउपशमनोपक्रम और प्रदेशउपशमनोपक्रम । विपरिणामनोपक्रम चार प्रकार का है । यथा-प्रकृतिविपरिणानोपक्रम, स्थितिविपरिणामनोपक्रम, अनुभावविपरिणामनोपक्रम और प्रदेशविपरिणानोपक्रम । ___अल्प-बहुत्व चार प्रकार का हैं । यथ-प्रकृति अल्पबहुत्व, स्थिति अल्पबहुत्व, अनुभाव अल्पबहुत्व और प्रदेश अल्पबहुत्व । संक्रम चार प्रकार का हैं प्रकृतिसंक्रम, स्थितिसंक्रम, अनुभावसंक्रम, प्रदेशसंक्रम | निधत्त चार प्रकार का हैं । यथा-प्रकृति निधत्त, स्थिति निधत्त, अनुभाव निधत्त और प्रदेश निधत्त । निकाचित चार प्रकार का हैं । यथा-प्रकृति निकाचित्त, स्थिति निकाचित, अनुभाव निकाचित और प्रदेश निकाचित । [३१६] एक संख्यावाले चार हैं । यथा-द्रव्य एक, मातृका पद एक, पर्याय एक,
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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