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________________ स्थान-४/२/३०० शरीखाले पुरुष को भी ज्ञान-दर्शन उत्पन्न हो जाता हैं । किसी कृशकाय पुरुष को भी ज्ञानदर्शन उत्पन्न नहीं होता और किसी सुदृढ़ शरीरवाले पुरुष को भी ज्ञान-दर्शन उत्पन्न नहीं होता । [३०१] चार कारणों से वर्तमान में निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के चाहने पर भी उन्हें केवल ज्ञान-दर्शन उत्पन्न नहीं होता । जो बार-बार स्त्री-कथा, भक्त-कथा, देश-कथा और राज-कथा कहता हैं । जो विवेकपूर्वक कायोत्सर्ग करके आत्मा को समाधिस्थ नहीं करता हैं । जो पूर्वरात्रि में और अपरात्रि में धर्मजागरण नहीं करता हैं । जो प्रासुक आगमोक्त और एषणीय अल्प-आहार नहीं लेता तथा सभी घरों से आहार की गवेषणा नहीं करता हैं । चार कारणों से वर्तमान में भी निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के चाहने पर उन्हें केवल ज्ञान, केवलदर्शन उत्पन्न होता हैं । जो स्त्रीकथा आदि चार कथा नहीं करते हैं । जो विवेकपूर्वक कायोत्सर्ग करके आत्मा को समाधिस्थ करते हैं । जो पूर्वरात्रि और अपररात्रि में धर्म-जागरण करते हैं । जो प्रासुक और एषणीय अल्प आहार लेते हैं तथा सभी घरों से आहार की गवेषणा करते हैं । [३०४] चार महाप्रतिपदाओं में निर्ग्रन्थ निन्थियों को स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है । वे चार प्रतिपदायें ये हैं- श्रावण कृष्णा प्रतिपदा, कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा, मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा, वैशाख कृष्णा प्रतिपदा । चार संध्याओं में निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों को स्वाध्याय करना नहीं कल्पता हैं । वे चार संध्यायें ये हैं- दिन के प्रथम प्रहर में, दिन के अन्तिम प्रहर में, रात्रि के प्रथम प्रहर में और रात्रि के अंतिम प्रहर में । [३०५] लोकस्थिति चार प्रकार की है । वह इस प्रकार है-आकाश के आधार पर घनवायु और तनवायु प्रतिष्ठित है । वायु के आधार पर घनोदधि प्रतिष्ठित है । घनोदधि के आधारपर पृथ्वी प्रतिष्ठित है । और पृथ्वी के आधार पर त्रस-स्थावर प्राणी प्रतिष्ठित है । [३०६] पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । वह इस प्रकार है- तथापुरुष-जो सेवक, स्वामी की आज्ञानुसार कार्य करे । नो तथापुरुष-जो सेवक स्वामी की आज्ञानुसार कार्य न करे । सौवस्थिक पुरुष-जो स्वस्तिक पाठ करे । और प्रधान पुरुष-जो सबका आदरणीय हो । पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । आत्मांतकर-एक पुरुष अपने भव का अंत करता हैं दूसरे के भव का अंत नहीं करता । परांतकर-एक पुरुष दूसरे के भव का अंत करता है अपने भव का अंत नहीं करता । उभयांतकरी-एक पुरुष अपने और दूसरे के भव का अंत करता हैं । न उभयांतकर-एक पुरुष अपने और दूसरे दोनो के भव का अंत नहीं करता । पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । वह इस प्रकार है-एक पुरुष स्वयं चिंता करता हैं, किंतु दूसरे को चिंता नहीं होने देता, एक पुरुष दूसरे को चिंतित करता हैं, किंतु स्वयं चिंता नहीं करता । एक पुरुष स्वयं भी चिंता करता है और दूसरे को भी चिंतित करता हैं । एक पुरुष न स्वयं चिंता करता है और न दूसरे को चिंतित करता हैं । पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । वह इस प्रकार है-एक पुरुष आत्मदमन करता हैं, किंतु दूसरे का दमन नहीं करता । एक पुरुष दूसरे का दमन करता है किंतु आत्मदमन नहीं करता । एक पुरुष आत्मदमन भी करता हैं और परदमन भी करता हैं । एक पुरुष न आत्मदमन करता हैं और न परदमन करता हैं ।
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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