SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद से भी ऊंचे, कितनेक द्रव्य से ऊंचे किन्तु भाव से नीचे, कितनेक द्रव्य से नीचे किन्तु भाव से ऊंचे, कितनेक द्रव्य से भी नीचे और भाव से भी नीचे । इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा-कितनेक द्रव्य से 'जाति से' उन्नत और गुण से भी उन्नत इस प्रकार-यावत्द्रव्य से भी हीन और गुण से भी हीन । चार प्रकार के वृक्ष कहे गये हैं, यथा-कितनेक वृक्ष ऊंचाई में उन्नत होते हैं और शुभ रस वाले होते हैं । कितनेक वृक्ष ऊंचाई में उन्नत होते हैं परन्तु अशुभ रस वाले होते हैं । कितनेक वृक्ष ऊंचाई में अवनत और रसादि में उन्नत होते हैं । कितनेक वृक्ष ऊंचाई में भी अवनत और रसादि में भी अवनत होते हैं । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं-यथाद्रव्य से भी उन्नत और गुण-परिणमन से भी उन्नत । इत्यादि चार भंग । __चार प्रकार के वृक्ष कहे गये हैं, कितनेक ऊंचाई में भी ऊंचे और रुप में भी उन्नत | इत्यादि चार भंग । इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा-कितनेक द्रव्यादि से उन्नत होते हए रुप से भी उन्नत हैं । इत्यादि चार भंग । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा-द्रव्यादि से उन्नत होते हुए उन्नत मनवाले-यावत्-चार भंग । इसी प्रकार संकल्प प्रज्ञा, दृष्टि, शीलाचार, व्यवहार, पराक्रम, सब के चार चार भंग समझ लेने चाहिए । इन मन सूत्रों में पुरुष सूत्र ही समझने चाहिये, वृक्ष सूत्र नहीं । ___चार प्रकार के वृक्ष कहे गये हैं, यथा-कितनेक वृक्ष कहे आकृति से भी सरल और फलादि देने में भी सरल, कितनेक आकृति में सरल और फलादि देने में वक्र । इस प्रकार चार भंग । इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा-आकृति से भी सरल और हृदय से भी सरल । इसी प्रकार उन्नत प्रणत के चार भंग और ऋजुवक्र के चार भंग भी कहने चाहिये । पराक्रम तक सब भंग जान लेने चाहिए । [२५१] प्रतिमाधारी अनगार को चार भाषाए बोलना कल्पता हैं, यथा-याचनी, प्रच्छनी, अनुज्ञापनी, प्रश्नव्याकरणी । [२५२] चार प्रकार की भाषाएं कही गई हैं, यथा-सत्यभा, मृषा, सत्य-मृषा और असत्यामृषा-व्यवहार भाषा । [२५३] चार प्रकार के वस्त्र कहे गये हैं,यथा- शुद्ध तन्तु आदि से बुना हुआ भी हैं और बाह्य मेल से रहित भी है । शुद्ध बुना हुआ तो है परन्तु मलिन है, शुद्ध बुना हुआ नहीं परन्तु स्वच्छ है । शुद्ध बना हुआ भी नहीं हैं और स्वच्छ भी नहीं हैं । इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा-जाती आदि से शुद्ध और ज्ञानादी गुण से भी शुद्ध । इत्यादि चार भंग । इसी तरह परिणत और रूप से भी वस्त्र की चौभंगी और पुरुष की चौभंगी समझ लेनी चाहिए । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा-जात्यादि से शुद्ध और मन से भी शुद्ध । इत्यादि चार भंग ! इसी तरह संकल्प-यावत्-पराक्रम के भी चारभंग जानने चाहिए । [२५४] चार प्रकार के पुत्र कहे गये हैं, अतिजात, 'अपने पिता से भी बढा चढा हुआ, 'अनुजात, 'पिता के समान, अवजात 'पिता से कम गुण वाला, कुलांगार' कुलमें कलंक लगानेवाला, । [२५५] चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा-कितने द्रव्य से भी सत्य और भाव
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy