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________________ स्थान-३/३/१९५ भक्त 'दो उपवास' करनेवाले मुनि को तीन प्रकार का जल लेना कल्पता हैं, यथा-तिल का धोवन, तुष का धोवन, जौ का धोवन । अष्टभक्त 'तीन उपवास' करनेवाले मुनि को तीन प्रकार का जल लेना कल्पता हैं, ओसामन, छाछ के ऊपर का पानी, शुद्ध उष्णजल | भोजन स्थान में अर्पित किया हुआ आहार तीन प्रकार का है, यथा-फलिखोपहृत, शुद्धोपहृत, संसृष्टोपहृत । तीन प्रकार का आहार दाता द्वारा दिया गया कहा गया हैं, यथादेने वाला हाथ से ग्रहण कर देवे, आहार के बर्तन से भोजन के बर्तन में रख कर देवे, बचे हुए अन्न को पुनः बर्तन में रखते समय देवे । तीन प्रकार की ऊनोदरी कही गई हैं, यथा-उपकरण कम करना, आहार पानी कम करना, कषाय त्याग रूप भाव ऊनोदरी । उपकरण ऊणोदरी तीन प्रकार की कही गई हैं, यथाएक वस्त्र, एक पात्र, संयमी संमत उपाधि धारण । तीन स्थान निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों के लिए अहित कर, अशुभ, अयुक्त, अकल्याणकारी, अमुक्तकारी और अशुभानुबन्धी होते हैं, यथा- आर्तस्वर ‘क्रन्दन' करना, शय्या उपधि आदि के दोषोद्भावन युक्त प्रलाप करना, दुनि 'आर्त-रौद्रध्यान' करना । तीन स्थान साधु और साध्वियों के लिए हितकर, शुभ, युक्त, कल्याणकारी और शुभानुबन्धी होते हैं, यथा-आर्तस्वर 'क्रन्दन' न करना, दोषोदावन गर्भित प्रलाप नहीं करना, अपध्यान नहीं करना । शल्य तीन प्रकार के कहे गये हैं, मायाशल्य, निदानशल्य और मिथ्यादर्शनशल्य । तीन कारणों से श्रमण-निर्ग्रन्थ संक्षिप्त विपुल तेजोलेश्या वाला होता हैं, यथा-आतापना लेने से, क्षमा रखने से, जलरहित तपश्चर्या करने से । तीन मास की भिक्षु-प्रतिमा को अंगीकार करनेवाले अनगार को तीन दत्ति भोजन की और तीन दत्ति जल की लेना कल्पता एकरात्रि की भिक्षु प्रतिमा का सम्यग् आराधन नहीं करने वाले साधु के लिए वे तीन स्थान अहितकर, अशुभकर, अयुक्त, अकल्याणकारी और अशुभानुबन्धी होते हैं, यथा-वह पागल हो जाय, दीर्घकालीन रोग उत्पन्न हो जाय, केवलि प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाय । एक रात्रि की भिक्षु-प्रतिमा का सम्यग् आराधना करनेवाले अनगार के लिए ये तीन स्थान हितकर शुभकारी, युक्त, कल्याणकारी और शुभानुबन्धी होते हैं, यथा-उसे अवधिज्ञान उत्पन्न हो, मनःपर्यायज्ञान उत्पन्न हो, केवलज्ञान उत्पन्न हो । [१९६] जम्बूद्वीप में तीन कर्मभूमियां कही गई हैं, भरत, एरवत और महाविदेह । इसी प्रकार धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में यावत् अर्धपुष्करवरद्वीप के पश्चिमार्द्ध में भी तीन तीन कर्मभूमियां गई हैं। [१९७] दर्शन तीन प्रकार के हैं, यथा-सम्यग्दर्शन, मिथ्यादर्शन और मिश्रदर्शन | रुचि तीन प्रकार की हैं, यथा-सम्यग्रुचि, मिथ्यारुचि और मिश्ररुचि । प्रयोग तीन प्रकार के हैं, यथा-सम्यगप्रयोग, मिथ्याप्रयोग और मिश्रप्रयोग ।। [१९८] व्यवसाय तीन प्रकार के हैं, यथा-धार्मिक व्यवसाय, अधार्मिक व्यवसाय, मिश्र व्यवसाय । अथवा-तीन प्रकार व्यवसाय 'ज्ञान' कहे गये हैं, यथा-प्रत्यक्ष ‘अवधि आदि' प्रात्ययिक 'इन्द्रिय और मने के निमित्त' से होनेवाला और आनुगामिक । अथवा तीन प्रकार के व्यवसाय कहे गये हैं, यथा-ऐहलौकिक व्यवसाय, पारलौकिक
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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