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________________ ५२ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद उनके समीप प्रकट होऊं जिससे वे मेरी इस प्रकार की मिली हुई, प्राप्त हुई और सम्मुख उपस्थिति हुई दिव्य देवर्द्धि, दिव्य द्युति और दिव्य देवशक्ति को देखें ।” इन तीन कारणों से देवलोक में नवीन उत्पन्न हुआ देव मनुष्य लोक में शीघ्र आ सकता हैं । [१९१] तीन स्थानों की देवता भी अभिलाषा करते हैं, यथा- मनुष्यभव, आर्यक्षेत्र में जन्म और उत्तम कुल में उत्पत्ति । तीन कारणोंसे देव पश्चात्ताप करते हैं, यथा-अहो ! मैने बल होते हुए, शक्ति होते हुए, पौरुष - पराक्रम होते हुए भी निरुपद्रवता और सुभिक्ष होने पर भी आचार्य और उपाध्याय के विद्यमान होने पर और नीरोगी शरीर होने पर भी शास्त्रों का अधिक अध्ययन नहीं किया । अहो ! मैं विषयों का प्यासा बन कर इहलोक में ही फंसा रहा और परलोक से विमुख बना रहा जिससे मैं दीर्घ श्रमण पर्याय का पालन नहीं कर सका । अहो ! ऋद्धि, रस और रूप के गर्व में फंसकर और भोगों में आसक्त होकर मैंने विशुद्ध चारित्र का स्पर्श भी नहीं किया । [१९२] तीन कारणों से देव - " मैं यहां से च्युत होऊंगा" यह जानते हैं, यथा-विमान और आभरणों को कान्तिहीन देख कर, कल्पवृक्ष को म्लान होता हुआ देखकर, अपनी तेजोलेश्या को क्षीण होती हुई जानकर । तीन कारणों से देव उद्वेग पाते हैं, यथा- अरे मुझे इस प्रकार की मिली हुई, प्राप्त हुई और सम्मुख आई हुई दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति और दिव्यशक्ति छोड़नी पड़ेगी । अरे मुझे माता के ऋतु और पिता के वीर्य के सम्मिश्रण का प्रथम आहार करना पड़ेगा । अरे मुझे माता के जठर के मलमय, अशुचिमय, उद्वेगमय और भयंकर गर्भावास में रहना पड़ेगा । [१९३] विमान तीन प्रकार के कहे गये हैं यथा- गोल, त्रिकोण और चतुष्कोण । इन में जो गोल विमान हैं वे पुष्कर कर्णिका के आकार केहोते हैं उनके चारों और प्राकार होता हैं और प्रवेश के लिए एक द्वार होता हैं । उनमें जो त्रिकोण विमान है वे सिंघाड़े के आकार के, दोनों तरफ परकोटा वाले, एक तरफ वेदिका वाले और तीन द्वार वाले कहे गये हैं । उनमें जो चतुष्कोण विमान हैं वे अखाड़े के आकार के हैं और सब तरफ वेदिका से घिरे हुए हैं तथा चार द्वारवाले कहे गये हैं । देव विमान तीनके आधारपर स्थित हैं, यथा-घनोदधि प्रतिष्ठित, घनवात प्रतिष्ठित, आकाश प्रतिष्ठित । विमान तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-अवस्थित, वैक्रेय के द्वारा निष्पादित, पारियानिक आवागमन के लिए वाहन रूप में काम आनेवाले । [१९४] नैरयिक तीन प्रकार के कहे गये हैं, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि । इस प्रकार विकलेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त समझ लेना चाहिए । तीन दुर्गतियां कही गई हैं, नरक दुर्गति, तिर्यंचयोनिक दुर्गति और मनुष्य दुर्गति । तीन सद्गतियां कही गई हैं, यथा- सिद्ध सद्गति, देव सद्गति और मनुष्य सद्गति । तीन दुर्गति प्राप्त कहे गये हैं, यथा-नैरयिक दुर्गति प्राप्त, तिर्यंचयोनिक दुर्गति प्राप्त मनुष्य दुर्गति प्राप्त । तीन सद्गति प्राप्त कहे गये हैं, यथा- सिद्धसद्गति प्राप्त, देवसद्गति प्राप्त, सद्गति प्राप्त । [१९५] चतुर्थभक्त 'एक उपवास करने वाले मुनि को तीन प्रकार का जल लेना कल्पता हैं, आटे का धोवन, उबाली हुई भाजी पर सिंचा गया जल, चांवल का धोवन । छट्ट
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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