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________________ ४४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद प्रकार की उपधि कही गई है, यथा-सचित, अचित और मिश्र । इस प्रकार निरन्तर नैरयिक जीवों को-यावत्-वैमानिकों को तीनों हो प्रकार की उपधि होती हैं । परिग्रह तीन प्रकार का कहा गया हैं, यथा-कर्म-परिग्रह, शरीर परिग्रह बाह्य-भाण्डोपकरणपरिग्रह । असुरकुमारों को तीनों प्रकार का परिग्रह होता हैं । यों एकेन्द्रिय और नारक को छोड़ कर वैमानिक पर्यन्त समझना चाहिए । अथवा तीन प्रकार का परिग्रह कहा गया हैं, यथासचित्त, अचित्त और मिश्र । निरन्तर नैरयिक यावत्-विमानवासी देवों को तीनों प्रकार का परिग्रह होता है । [१४७] तीन प्रकार का प्रणिधान (एकाग्रता) कहा गया हैं, यथा-मन-प्रणिधान, वचन-प्रणिधान और काय-प्रणिधान । यह तीन प्रकार का प्रणिधान पंचेन्द्रियों से लेकर वैमानिक पर्यन्त सब दण्डकों में पाया जाता हैं । तीन प्रकार का सुप्रणिधान कहा गया है, यथा-मन का सुप्रणिधान, वचन का सुप्रणिधान, काय का सुप्रणिधान । संयत मनुष्यों का तीन प्रकार का सुप्रणिधान कहा गया हैं, यथा- मनका सुप्रणिधान, वचन का सुप्रणिधान काय का सुप्रणिधान । तीन प्रकार का अशुभ प्रणिधान हैं, मन का अशुभप्रणिधान, वचन का अशुभप्रणिधान, काय का अशुभप्रणिधान । यह पंचेन्द्रिय से वैमानिक पर्यन्त होता हैं । [१४८] योनि तीन प्रकार की कही गई है, यथा-शीत, उष्ण और शीतोष्ण । यह तेजस्काय को छोड़ कर शेषएकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय संमूर्छिम तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रिय और संमूर्छिम मनुष्यों को होती है । योनि तीन प्रकार की कही गई है, यथा-सचित्त, अचित्त और मिश्र । यह एकेन्द्रियों, विकलेन्द्रियों, सम्मूर्छिम तिर्यंचयोनिकपंचेन्द्रियों और सम्मूर्छिम मनुष्यों को होती है । योनि तीन प्रकार की कही गई है, यथा-संवृता, विवृता और संवृत-विवृता । योनि तीन प्रकार की कही गई है, यथा-कूर्मोन्नता, शंखावर्ता और वंशीपत्रिका । उत्तम पुरुषों की माताओं की कूर्मोन्नता योनि होती हैं । कूर्मोन्नता योनि में तीन प्रकार के उत्तम पुरुष गर्भ रूप में उत्पन्न होते हैं, यथा-अर्हन्त, चक्रवर्ती और बलदेव-वासुदेव । चक्रवर्ती के स्त्रीरत्न की योनि शंखावत होती है । शंखावर्त योनि में बहुत से जीव और पुद्गल पैदा होते हैं, एवं नष्ट होते हैं किन्तु जन्म धारण नहीं करते हैं । वंशीपत्रिकायोनि सामान्य मनुष्यों की योनि है । वंशीपत्रिकायोनि में बहुत से सामान्य मनुष्य गर्भरूप में उत्पन्न होते हैं । [१४९] तृण (बादर) वनस्पतिकाय तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा-संख्यात जीववाली, असंख्यात जीववाली और अनन्त जीववाली । [१५०] जम्बूद्वीपवर्ती भरतक्षेत्र में तीन तीर्थ कहे गये हैं, यथा-मागध, वरदाम और प्रभास । इसी तरह ऐवत क्षेत्र में भी समझने चाहिए । जम्बूद्वीपवर्ती महाविदेह क्षेत्र में एक एक चक्रवर्ती विजय में तीन तीर्थ कहे गये हैं, यथा-मागध, वरदाम और प्रभास । इसी तरह धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में और पश्चिमार्ध में तथा अर्धपुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध में और पश्चिमार्ध में भी इसी तरह जानना चाहिये । [१५१] जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी काल के सुषम नामक आरक का काल तीन कोड़ाक्रोड़ी सागरोपम था । इसी तरह इस अवसर्पिणी काल के
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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