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________________ स्थान-२/४/११० [११०] श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए दो प्रकार के मरण सदा (उपादेय रूप से) नहीं कहें हैं, कीर्तित नहीं कहे हैं, व्यक्त नही कहे हैं, प्रशस्त नहीं कहे है और उनके आचरण की अनुमति नहीं दी है, यथा- वलद्मरण (संयम से खेद पाकर मरना) वशात मरण (इन्द्रिय-विषयों के वश होकर मरना) । इसी तरह निदान मरण और तद्भवमरण । पर्वत से गिरकर मरना और वृक्ष से गिरकर मरना । पानी में डूबकर या अग्नि में जलकर मरना । विष का भक्षण कर मरना और शस्त्र का प्रहार कर मरना ।। दो प्रकार के मरण-यावत्-नित्य अनुज्ञात नहीं है किन्तु कारण-विशेष होने पर निषिद्ध नहीं है, वे इस प्रकार हैं, यथा- वैहायस मरण (वृक्ष की शाखा वगैरह पर लटक कर) और गृध्रपृष्ठ मरण (गीध आदि पक्षियों से शरीर नुचवा कर मरना) ।। श्रमण भगवान् महावीर ने दो मरण श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए सदा उपादेय रुप से वर्णित किये हैं. यावत्-उनके लिए अनुमति दी है, यथा पादपोपगमन और भक्त प्रत्याख्यान पादपोपगमन दो प्रकार का हैं, यथा-निरिम (ग्राम नगर आदि में मरना जहां मृत्यु संस्कार हो) अनि रिम (गिरि कन्दरादि में मरना जहाँ मृत्यु संस्कार न हो) । भक्तप्रत्याख्यान दो प्रकार का है, निर्हारिम और अनि रिम ।। [१११] यह लोक क्या है ? जीव और अजीव ही यह लोक है । लोक में अनन्त क्या है ? जीव और अजीव, लोक में शाश्वत क्या है ? जीव और अजीव । [११२] बोधि दो प्रकार की है, यथा-ज्ञान-बोधि और दर्शन-बोधि । बुद्ध दो प्रकार के हैं, यथा-ज्ञान-बुद्ध और दर्शन-बुद्ध । इसी तरह मोह को समझना चाहिए । इसी तरह मूढ को समझना चाहिए । ११३] ज्ञानावरणीय कर्म दो प्रकार का है, देशज्ञानावरणीय और सर्व ज्ञानवरणीय । दर्शनावरणीय कर्म भी इस तरह दो प्रकार का है । वेदनीय कर्म दो प्रकार का कहा गया हैं, यथा-सातावेदनीय और असातावेदनीय । मोहनीय कर्म दो प्रकार का कहा गया हैं, यथा-दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय । आयुष्य कर्म दो प्रकार का कहा गया हैं, यथा-अद्धायु (कायस्थति) और भवायु (भवस्थिति) | नाम कर्म दो प्रकार का कहा गया हैं, यथा-शुभ नाम और अशुभ नाम | गोत्र कर्म दो प्रकार का कहा गया है, यथा-उच्च गोत्र और नीच गोत्र । अन्तराय कर्म दो प्रकार का कहा गया हैं, यथा-प्रत्युत्पन्न विनाशी(वर्तमान में होने वाले लाभ को नष्ट करनेवाला) पिहितागामीपथ (भविष्य में होनेवाले लाभ को रोकनेवाला) ११४१ मी दो प्रकार की कही गया है.यथा-प्रेम-प्रत्यया 'राग से होनेवाली' टेष प्रत्यया 'द्वेष से होनेवाली' प्रेम प्रत्यया मूर्छा दो प्रकार की कही गई है, माया और लोभ । द्वेष प्रत्यया मूर्छा दो प्रकार की कही गई है, यथा-क्रोध और मान । [११५] आराधना दो प्रकार की है । धार्मिक आराधना और केवलि आराधना । धार्मिक आराधना दो प्रकार की है । श्रुतधर्म आराधना और चारित्र-धर्माराधना । केवलि आराधना दो प्रकार की कही गई है, यथा-अन्तक्रिया और कल्पविमानोपपत्ति । यह आराधना श्रुतकेवली की होती हैं । [११६] दो तीर्थंकर नील-कमल के समान वर्ण वाले थे, यथा-मुनिसुव्रत और अरिष्टनेमि । दो तीर्थंकर प्रियंगु (वृक्ष-विशेष) के समान वर्णवाले थे, यथा- श्री मल्लिनाथ और
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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