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________________ समवाय प्र./२४१ २५५ कर, अनेक योजन, अनेक शत योजन, अनेक सहस्त्र योजन [ अनेक शत - सहस्त्र योजन] अनेक कोटि योजन, अनेक कोटाकोटी योजन, और असंख्यात कोटा कोटी योजन ऊपर बहुत दूर तक आकाशका उल्लंघन कर सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, शुक्र, सहस्त्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत कल्पों में, ग्रैवेयकों में और अनुत्तरों में वैमानिक देवों के चौरासी लाख सत्तानवै हजार और तेईस विमान हैं, ऐसा कहा गया है । विमान सूर्य की प्रभा के समान प्रभावाले हैं, प्रकाशों की राशियों (पुंजों) के समान भासुर हैं, अरज (वाभाविक रज से रहित ) हैं, नीरज ( आगन्तुक रज से विहीन) हैं, निर्मल हैं, अन्धकाररहित हैं, विशुद्ध हैं, मरीचि युक्त हैं, उद्योत सहित हैं, मन को प्रसन्न करने वाले हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं । भगवन् ! सौधर्म कल्प में कितने विमानावास कहे गये हैं । गौतम ! सौधर्म कल्प में बत्तीस लाख विमानावास कहे गये हैं । इसी प्रकार ईशानादि शेष कल्पों में सहस्त्रार तक क्रमशः पूर्वोक्त गाथाओं के अनुसार अट्ठाईस लाख, बारह लाख, आठ लाख, चार लाख पचास हजार, छह सौ तथा आनत प्राणत कल्प में चार सौ और आरण- अच्युत कल्प में तीन सौ विमान कहना चहिए । [२४२] सौधर्मकल्प में बत्तीस लाख विमान हैं । ईशानकल्प में अट्ठाईस लाख विमान हैं । सनत्कुमार कल्प में बारह लाख विमान हैं । माहेन्द्रकल्प में आठ लाख विमान हैं । ब्रह्मकल्प में चार लाख विमान हैं । लान्तक कल्प में पचास हजार विमान हैं । महाशुक्र विमान में चालीस हजार विमान हैं । सहस्त्रारकल्प में छह हजार विमान हैं । तथा [२४३] आनत, प्राणत कल्प में चार सौ विमान हैं । आरण और अच्युत कल्प में तीन सौ विमान हैं । इस प्रकार इन चारों ही कल्पों में विमानों की संख्या सात सौ है । [२४४] अधस्तन-नीचे के तीनों ही ग्रैवेयकों में एक सौ ग्यारह विमान हैं । मध्यम तीनों ही ग्रैवेयकों में एक सौ सात विमान हैं । उपरिम तीनों ही ग्रैवेयकों में एक सौ विमान हैं । अनुत्तर विमान पांच ही हैं । [२४५] भगवान् ! नारकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की कही गई है । भगवान् ! अपर्याप्तक नारकों की कितने काल तक स्थिति कही गई है ? गौतम ! जघन्य भी अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट भी स्थिति अन्तमुहूर्त की कही गई है । पर्याप्तक नारकियों की जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त कम दश हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति अन्तमुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की है । इसी प्रकार इस रत्नप्रभा पृथ्वी से लेकर महातम - प्रभा पृथ्वी तक अपर्याप्तक नारकियों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तमुहूर्त की तथा पर्याप्तकों की स्थिति वहाँ की सामान्य, जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति से अन्तमुहूर्त अन्तमुहूर्त कम जानना चाहिए | भगवान् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित विमानवासी देवों की स्थिति कितने काल कही गई है ? गौतम ! जघन्य स्थिति बत्तीस सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम कही गई है ।
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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