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________________ १९४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद गृहपतिरत्न, पुरोहितरत्न, वर्धकीरत्न, अश्वरत्न, हस्तिरत्न, असिरत्न, दंडरत्न, चक्ररत्न, छत्ररत्न, चर्मरत्न, मणिरत्न और काकिणिरत्न ।। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में चौदह महानदियां पूर्व और पश्चिम दिशा से लवणसमुद्र में जाकर मिलती हैं । जैसे-गंगा-सिन्धु, रोहिता-रोहितांसा, हरी-हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नरकान्ता-नारीकान्ता, सुवर्ण-कूला-रुप्यकूला, रक्ता और रक्तवती । इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति चौदह पल्योपम कही गई है । पांचवीं पृथ्वी में किन्ही-किन्हीं नारकों की स्थिति चौदह सागरोपम की है । किन्हीं-किन्हीं असुरकुमार देवों की स्थिति चौदह पल्योपम की है । सौधर्म और ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति चौदह पल्योपम है । लान्तक कल्प में कितनेक देवों की स्थिति चौदह सागरोपम है । महाशुक्र कल्प में कितनेक देवों की जघन्य स्थिति चौदह सागरोपपम है । वहां जो देव श्रीकान्त श्रीमहित श्रीसौमनस, लान्तक, कापिष्ठ, महेन्द्र, महेन्द्रकान्त और महेन्द्रोत्तरावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति चौदह सागरोपम है । वे देव सात मासों के बाद आनप्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों को चौदह हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है । कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो चौदह भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय-१४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् अनुवाद पूर्ण (समवाय-१५) [३२] पन्द्रह परमअधार्मिक देव कहे गये हैं[३३] अम्ब, अम्बरिषी, श्याम, शबल, रुद्र, उपरुद्र, काल, महाकाल । [३४] असिपत्र, धनु, कुम्भ, वालुका, वैतरणी, खरस्वर, महाघोष । [३५] नमि अर्हन् पन्द्रह धनुष ऊंचे थे। ध्रुवराहु कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन से चन्द्र लेश्या के पन्द्रहवें-पन्द्रहवें दीप्तिरूप भाग को अपने श्यामवर्ण से आवरण करता रहता है । जैसे—प्रतिपदा के दिन प्रथम भाग को, द्वितीया के दिन द्वितीय भाग को, तृतीया के दिन तीसरे भाग को, चतुर्थी के दिन चौथे भाग को, पंचमी के दिन पांचवें भाग को, षष्ठी के दिन छठे भाग को, सप्तमी के दिन सातवें भाग को, अष्टमी के दिन आठवें भाग को, नवमी के दिन नौवें भाग को, दशमी के दिन दशवें भाग को, एकादशी के दिन म्यारहवें भाग को, द्वादशी के दिन बारहवें भग को, त्रयोदशी के दिन तेरहवें भाग को, चतुर्दशी के दिन चौदहवें भाग को और पन्द्रस (अमावस) के दिन पन्द्रहवें भाग को आवरण करके रहता है । वही ध्रुवराहु शुक्ल पक्ष में चन्द्र के पन्द्रहवें-पन्द्रहवें भाग को उपदर्शन कराता रहता है । जैसे प्रतिपदा के दिन पन्द्रहवें भाग को प्रकट करता है, द्वितीया के दिन दूसरे पन्द्रहवें भाग को प्रकट करता है । इस प्रकार पूर्णमासी के दिन पन्द्रहवें भाग को प्रकट कर पूर्ण चन्द्र को प्रकाशित करता है ।
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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