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________________ समवाय-५/५ १८५ (ढाई मास) में उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों को पांच हजार वर्ष में आहार की इच्छा उत्पन्न होती है । कितनेक भव्यसिद्धिक ऐसे जीव हैं जो पांच भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय-५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (समवाय-६) [६] छह लेश्याएं कही गई हैं । जैसे-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या । (संसारी) जीवों के छह निकाय कहे गये हैं । पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय । छह प्रकार के बाहिरी तपःकर्म हैं । अनशन, ऊनोदर्य, वृत्तिसंक्षेप, रसपरित्याग, कायक्लेश और संलीनता । छह प्रकार के आभ्यन्तर तप हैं । प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग । छह छाद्मस्थिक समुद्घात कहे गये हैं । जैसे-वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणान्तिक समुद्धात, वैक्रिय समुद्धात, तैजस समुद्घात और आहारक-समुद्घात । अर्थावग्रह छह प्रकार का कहा गया है । जैसे श्रोत्रेन्द्रिय-अर्थावग्रह, चक्षुरिन्द्रियअर्थावग्रह, घ्राणेन्द्रिय-अर्थावग्रह, जिह्वेन्द्रिय-अर्थावग्रह, स्पर्शनेन्द्रिय-अर्थावग्रह और नोइन्द्रियअर्थावग्रह । कृत्तिका नक्षत्र छह तारा वाला है । आश्लेषा नक्षत्र तारा वाला है । इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति छह पल्योपम कही गई है । तीसरी वालुकाप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति छह सागरोपम कही गई है । कितनेक असुर कुमारों की स्थिति छह पल्योपम कही गई है । सौधर्म-ईशान कल्पों में कितने देवों की स्थिति छह पल्योपम कही गई है । सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति छह सागरोपम है । उनमें जो देव स्वयम्भू, स्वम्भूरमण, घोष, सुघोष, महाघो, कृष्टियो, वीर, सुवीर, वीरगत, वीर-श्रेणिक, वीरावर्त, वीरप्रभ, वीरकांत, वीरवर्ण, वीरलेश्य, वीरध्वज, वीरश्रृंग, वीरसृष्ट, वीरकूट और वीरोत्तरावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति छह सागरोपम कही गई है । वे देव तीन मासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वासनिःश्वास लेते हैं । उन देवों के छह हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है । कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो छह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय-६ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (समवाय-७ [७] सात भयस्थान कहे गये हैं । जैसे-इहलोकभय, परलोकभय, आदानभय, अकस्मात्
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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