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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद कितनेक भव्य - सिद्धिक जीव ऐसे हैं जो चार भवग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय- ४ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण १८४ समवाय- ५ [५] क्रियाएं पांच कही गई हैं । जैसे - कायिकीक्रिया, आधिकरणिकी क्रिया, प्राद्वेषिकी क्रिया, पारितापनिकी क्रिया, प्राणातिपात क्रिया । पांच महाव्रत कहे गये हैं । जैसे- सर्व प्राणातिपात से विरमण, सर्वमृषावाद से विरमण, सर्व अदत्तादान से विरमण, सर्व मैथुन से विरमण, सर्व परिग्रह से विरमण । इन्द्रियों के विषयभूत कामगुण पांच कहे गये हैं । जैसे- श्रोत्रेन्द्रिय का विषय शब्द, चक्षुरिन्द्रिय का विषय रूप, रसनेन्द्रिय का विषय रस, घ्राणेन्द्रिय का विषय गन्ध, और स्पर्शनेन्द्रिय का विषय स्पर्श । कर्मबंध के कारणों को आस्त्रवद्वार कहते हैं । वे पाँच हैं । जैसे- मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग । कर्मों का आस्त्रव रोकने के उपायों को संवरद्वार कहते हैं । वे भी पांच कहे गये हैं- सम्यक्त्व, विरति, अप्रमत्तता, अकषायता और अयोगता या योगों की प्रवृत्ति का निरोध । संचित कर्मों की निर्जरा के स्थान, कारण या उपाय पांच कहे गये हैं । जैसे- प्राणातिपात विरमण, मृषावाद - विरमण, अदत्तादान- विरमण, मैथुन-विरमण, परिग्रह - विरमण । संयम की साधक प्रवृत्ति या यतना-पूर्वक की जाने वाली प्रवृत्ति को समिति कहते हैं । वे पांच कही गई हैं - गमनागमन में सावधानी रखना ईर्यासमिति है । वचन बोलने में सावधानी रखकर हित मित प्रिय वचन बोलना भाषा समिति है । गोचरी में सावधानी रखना और निर्दोष, अनुद्दिष्ट भिक्षा ग्रहण करना एषणासमिति है । संयम के साधक वस्त्र, पात्र, शास्त्र आदि के ग्रहण करने और रखने में सावधानी रखना आदानभांड- मात्र निक्षेपणा समिति है । उच्चार (मल) प्रस्त्रवण (मूत्र) श्लेष्म (कफ) सिंघाण (नासिकामल) और जल्ल ( शरीर का मैल) परित्याग करने में सावधानी रखना पांचवीं प्रतिष्ठापना समिति है । पांच अस्तिकाय द्रव्य कहे गये हैं । जैसे- धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय । रोहिणी नक्षत्र पांच तारावाला कहा गया है । पुनर्वसु नक्षत्र पांच तारावाला कहा गया है । हस्त नक्षत्र पांच तारावाला कहा गया है । विशाखा नक्षत्र पाँच तारावाला कहा गया है। धनिष्ठा नक्षत्र पांच तारावाला कहा गया है । इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति पांच पल्योपम कही गई है । तीसरी वालुकाप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति पांच सागरोपम कही गई है । सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति पांच पल्योपम कही गई है । सनत्कुमार - माहेन्द्र कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति पाँच सागरोपम कही गई है । जो देव वात, सुवात, वातावर्त, वातप्रभ, वातकान्त, वातवर्ण, वातलेश्य, वातध्वज, वातश्रृंग, वातसृष्ट, वातकूट, वातोत्तरावतंसक, सूर, सुसूर, सूरावर्त, सूरप्रभ, सूरकान्त, सूरवर्ण, सूरलेश्य, सूरध्वज, सूरश्रृंग, सूरसृष्ट, सूरकूट और सूरोत्तरावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति पांच सागरोपम कही गई है । वे देव पाँच अर्धमासों
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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