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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - -२२१ आसी से तंजाणगसरीरदव्यसामाइए से कितै भवियसरीरदव्यसामाइए भक्यिसरीरदब्वसामाइएजे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिडेणं मावणं सामाइए त्ति पयं सेपकाले सिक्खिस्सइ न ताव सिक्खइ जहा को दिद्वतो अयं महुकुंभे पविस्सई अयं घयकुंभे मयिस्सइ से तं भवियसरीरदव्यसामाइए से किं तं जाणगसरीर-पवियसरीर-वतिरिते दव्यसामाइए जाणगसरीर-भविय-सरीर-यतिरित्ते दव्यसामाइए-पत्तय-पोत्यय-लिहियं से तं जाणगसरीर-पविय-सरीर-यतिरित्ते दव्यसामाइए से तं नोआगमओ दव्यासामइए से तं दव्यसामाइए से किं तं भावसामाइए भावसामाइए दुविहे पन्नते तं जहा-आगमओय नोआगमओ प से किं तं आगरओ भावप्तामाइए आगमओ भावसामाइए-जाणए उवउत्ते से तं आगमओ भावसामाइए से किंतं नोआगमओ भावसामाइए नोआगमओ भावसामाइए-१५०-३1-1503 (२५०) जस्स सामाणिओ अप्पा संजमे नियमे तवे तस्स सामाइयं होइइइ केवलिभासियं ||१२७||-127 (३५१) जोसमोसव्वभूएसुतसेसु पावरेसुय तस्स सामाइयं होइ इइ केवलिभासियं १२८||-128 (३३२) जहममन पियं दुक्खंजाणिय एमेव सबजीवाणं नहणइन हणावइय सममणती तेण सो समणो ॥१२९||-129 (३३३) नत्यिय से कोइ वेसो पिओ व सव्वेसुघेवजीवेस एएणहोइ समणो एसो अन्नो बि पज्जाओ ॥१३०||-130 (३३४) उरग-गिरि-जलण-सागर-नहतल-तरुगणसमोय जो होइ भमर-पिय-धरणि-जलरुहरवि-पवणसमोयसोसमणो ॥१३॥-131 (३३५) तोसमणो जइ सुमणो मावेण यजइनहोइ पावमणो सयणे यजणेय समोसमोय माणावमाणेसु ॥१३२||-132 (३३६) से तं नोआगमओ भावसामाइए से तं भावसामाइए से तं सामाइए से तं नामनिष्फण्णे से किं तं सुत्तालावगनिष्फण्णे सुतालावगनिष्फन्ने-इयाणिं सुतालावगनिष्फण्णे निक्लेवे इचावे से य पत्तलक्खणे वि न निक्खिप्पई कम्हा लाघवत्यं अओ. अत्यि तइए अनु ओगदारे अनुगमे ति तत्य निरिखते इहं निक्खित्ते मवई इहं या निक्खित्ते तत्थ निक्खिते मवई तम्हा इन निक्खिप्पइ तहिं चेव निक्खिप्पिस्सइसेतं निक्खेवे ।१५०4150 (३३७) से किं तं अनुगमे अनुगमे दुविहे पन्नत्ते तं जहा-सुत्ताणुगमे य निजृत्तिअणुगमे य से किं तं निझुत्तिअणुगमे नित्तिअणुगमे तिविहे पन्नत्ते तं जहा-निक्खेवनिझुत्तिअणुगमे उवग्घायनिश्रुत्तिअणुगमे सुत्तफासियनिनुत्तिअणुगमे से किं तं निक्लेवनित्तिअणुगमे निक्खेवनिशत्तिअणुगमे अनुगए से तंनिक्लेवनितिअणुगमे से किं तं उवग्यायनिनुत्तिअणुगमे उवागायनिश्रुतिअगुगमे-इमाहिं दोहिं दारगाहाहिं अनुगंतब्बेतं जहा- १५१-१1-151-1 (३५८) उद्देसे निद्देसे यनिग्गमे खेत काल पुरिसे य कारण पचय लक्खण नए समोयराणानुमए ।।१३।।-133 (1) किंकाविहं कस्स कहिं केसुकहं केचिरंहवइ कालं कई संतर मविरहियं भवा गरिसफासण निरुत्ती १३४||-194 (३४०) से तं उवग्घाय निज्जुत्ति अणुगमे से किं तं सुत्तफासियनिनुत्तिअणुगमे सुतं उच्चारेयव्वं अक्खलियं अमिलियं अवधामेलियं पडिपत्रं पडिपन्नघोसं कंठोडविप्पमतकं गुरुवायणोवयं तओ नजिहिति ससमयपयं या परसमयपयं या बंधपयं वा मोक्खपयं वा For Private And Personal Use Only
SR No.009775
Book TitleAgam 45 Anuogdaram Chulikasutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size2 MB
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