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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनुभोमदारा - (२७१) घउरासीइंतुडियंगसयसहस्साइं से एगेतुडिए चउरासीइं तुडियसयसहस्साई से एगेअडडंगे चउरासीइंअडडंगसयसहस्साइं से एगेअड्डे एवं अववंगे अववे हुहुयंगे हुहुए उप्पलंगे उप्पले पउमंगे नलिणंगे नलिणे अत्यनिउरंगे अत्यनिउरे अउयंगे अउए नउयंगे नउए पउघंगे पउए चूलियंगे घूलिया सीस हेलियंगे सीसपहेलिया एतावताव गणिए एतावए चेवे गणियस्स विसए अतो परं ओयमिए पवत्तइ।१३७१-137 (२८०) से कि तं ओवमिए ओवमिए दुविहे० पलिओवमे य सागरोवमे य से किं तं पलिओवमे तिविहे. उद्धारपलिओवमे अद्धापलिओवमे खेत्तपलिओवपे प से किं तं उद्धारपलिओवमे दुविहे० सुहमेय वावहारिए यतत्य गंजेसे सुहुमे से ठप्पे तयणंजेसे वावहारिए से जहानामए पाल्ले सिया जोयणं आयाम-विक्खंभेणं जोयणं उड्दं उच्चत्तेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवैणं से णं पल्ले एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं सप्पट्टे सचिते भरिए वालग्गकोडीणं से णं वालग्गे नो अग्गी डहेजा नो याऊ हरेजा नो कुच्छेजा नो पलिविद्धंसेजा नो पूइताए हव्वमागच्छेजा तओ णं समए-सपए एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए पवइ से तं वावहारिए उद्धारपलिओवमे।१३८-१1-138-1 (२८१) एएर्सि पल्लाणं कोडाकोडीहवेचा दसगुणिया । तं वावहारियस्स उतारसगारोयमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥१०७।-107 (२८२) एएहिं वावहारियउद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं एएहिं वावहारियउद्धारपलिओवम-सागरोयमेहिनस्थि किंचिप्पओयणं केवलं पन्नवणई पत्रविशति से तं वावहारिए उद्धारपलिओवये से किं तं सुहमे उद्धारपलिओयमे सुहमे उद्धारपलिओवये से जहानापए पल्ले सिया-जोयणं आयाम-विक्खंभेणं जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेयेणं से णं पाले एगाहिय-आयाहिय-तेयाहिय जाव भरिए वालग्गकोडीणं तत्य णं एगमेगे वालग्गे असंखेवाई खंडाई कज्जइ ते णं वालग्गा दिट्ठीओगाहणाओ असंखेनइभागमेत्ता सुहमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा ते णं वालो नो अग्गी डडेजा जाव नो पलिविद्धंसेजा नो पूइत्ताए हव्दमागच्छेजा तओ णं समए-समए एगमेगं वालग्गं अवहाय जायइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निटिए भवइसे तं सुहमे उद्धारपलिओवमे |१३८-२/-198-2 (२८३) एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी हवेझ दसगुणिया तंसहमस्स अद्धासागरोवमस्स एगस्स मवे परीमाणं ||१०८1-108 (२८४) एएहिं सहमअद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं० दीव-समुद्दाणं उद्धारो धेप्पड केवइया णं भंते दीव-समुद्दा उद्धारेणं पन्नत्ता गोयमा आवइया णं अड्ढाइमाणं उद्धारसागरोक्माणं उद्धारसमया० से तं सहमे उद्धारपलिओवमे से तं उद्धारपलिओचमे से किं तं अद्धापलिओवमे दुविहे० सुहमे य वावहारिए पतस्य णंजेसे सुरुमे से ठप्पे तत्य णं जेसे वावहारिए से जहानामए पल्ले सिया-जोयणं आयाम-विक्खंभेणं जोयणं उड्ढे उच्चत्तेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खवेणं से णं पल्ले एगाहिय-बेयाहिय-जाव परिए वालागकोहीणं से णं वालग्गे नो अग्गी हहेजा जाव नो पलिविद्धसेना नो पूइत्ताए हन्चमागच्छेा तओ णं वाप्तसए-याससए गते एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पाये खीणे नीरए निलेवे निहिए भय से तं यावहारिए अशापलिओयमे ।१३८-३1-138-3 For Private And Personal Use Only
SR No.009775
Book TitleAgam 45 Anuogdaram Chulikasutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size2 MB
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