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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुतं - २७१ १९ (२७१) से किं तं कालप्पमाणे कालप्पमाणे दुविहे पत्रत्ते तं जहा पएसिनिष्कण्णे य विभागनिष्फण्णे य । १३४1-134 (२७२) से किं तं पएसनिष्कण्णे पएसनिष्फण्णे- एगसमयईिए दुसमपट्ठिईए तिसमयईए जाच दससमयट्टिईए संखेज्जसमयट्ठिईए असंखेजसमयईिए से तं पएसनिष्फण्णे । १३५ /- 136 (२७३) से किं तं विभागनिष्फण्णे विभागनिष्फण्णे ॥१३६/- 138 (२७४ ) समयावलिय - मुहुत्ता दिवसमहोरत्त पक्ख-मासा य संवच्छर-जुग-पलिया सागर - ओसप्पि परियट्टा ॥१०३॥-103 (२७५) से किं तं समए समयस्स णं परूवणं करिस्सामि-से जहानामए तुण्णागदारए सिप्या तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पातंके धिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय- पास-पिहूं-तरोरुपरिणते तलजमलडुयल - परिधनिभबाहू चम्मेष्वग दुहण- मुट्ठिय-समाहत - निचित- गत्तकाए उरस्सबलसमण्णागए लंघण पयण-जण वायामसमत्ये छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले मेहावी निउणे निउणसिप्पोवगए एवं महतिं पडसाडियं वा पट्टसाडियं वा गहाय वा गहाय सयराहं हत्यमेत्तं ओसारेजा तत्य चोयए पत्रवयं एवं वयासी जेणं कालेणं तेणं तुण्णागदारएणं तीसे पडसाडियाए या पट्टसाडियाए वा सयराहं हत्यमेत्तं ओसारिए से समए भवइ नो इणमट्टे समड़े कम्हा जम्हा संखेज्जाणं तंतूणं समुदय समिति-समागमेणं एगा पडसाडिया निष्फज्जइ उवपिल्लम्म तंतुम्मि अच्छिण्णे हे तंतू छिज्जइ तम्हा से समए न भवइ एवं वयंतं पत्रवयं चोयए एवं वयासी- जेणं कालएमं तेणं तुण्णागदारएणं तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाडियाए वा उदरिल्ले तंतू छिण्णे से समए न भवइ कम्हा जम्हा संखेजाणं पम्हाणं समुदय समिति-समागमेणं एगे तंतू निष्फल उवरिल्ले पन्हे अच्छिणे हेट्ठिल्ले पन्हे न छिइ अण्णम्मि काले उचरिल्ले पन्हे छिइ अण्णम्मि काले ट्ठिले पम्हे छिइ तम्हा से समए न भवइ एवं वयंतं पन्नपवयं चोयए एवं वयासी- जेणं कालेणं तेणं तुष्णागदाराएणं तस्स तंतुस्स उवरिल्ले पन्हे छिण्णे से समए न भयइ कम्हा जम्हा अनंताणं संघायाणं समुदय समिति-समागमेणं एगे पम्हे निष्फलाइ उचरिल्ले संघाए अविसंघाइए हेडिल्लै संघाए न विसंघाइजर अण्णम्मि काले उवरिल्ले संघाए विसंघाइजर अण्णम्मि काले हैट्ठिले संघाए विलसंघाइज तम्हा से समए न भवइ एत्तो वि य णं सुहुतराए समए पत्रत्ते समणाउसो असंखेजाणं समयाणं समुदय समिति-समागमेणं सा एगा आवलिया त्ति वुझइ संखेजाओ आवलियाओ ऊसासो संखेजाओ आवलियाओ नीसासो ॥१३७-१/-137-1 (२७६) हट्ठस्स अणवगल्ल, निरुवक्किट्ठस्स जंतुणो एगे ऊसास- नीसासे एस पाणु त्ति वुच्चइ (२७७) सत पाणूणि से धोवे सत्त योवाणि से लवे ॥१०४॥ -104 ॥१०६॥ 100 लवाणं सत्तहत्तरिए एस मुहुत्ते वियाहिए (२७८) तिणि सहस्सा सत्त य सयाई तेहत्तरि च ऊसासा एस मुहुत्ती पणियो सव्येहिं अनंतनाणीहिं (२७९) एएणं मुहुत्तपमाणेणं तीसं मुहुत्ता अहोरत्तं पन्नरस अहोरता पक्खो दो पक्खा मासो दो मासा उऊ तिण्णि उऊ अयण दो अयणाई संवच्छरे पंच संघच्छराई जुगे वीसं जुगाईझं वाससयं दसवाससपाई वाससहस्सं सर्यवाससहस्साणं वासस्यसहस्तं चउरासीइं वाससयसहस्साइं से एगेपुव्यंगे चउरासीइंपुव्वंगसयसहस्साई से एगेपुव्वे घउरासीनं पुव्यसयसहस्साइं से एगेतुडियंगे For Private And Personal Use Only ||90411-105
SR No.009775
Book TitleAgam 45 Anuogdaram Chulikasutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size2 MB
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