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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ मताणपणाणि-10/10 (३२५) अकलेवरसेणि मुस्सिया सिद्धि गोयम लोयं गच्छसि खेमंच सिवं अनुत्तरं समयं गोयममा पमायए ॥३२॥-36 (१२६) बुद्धि परिनिव्युडे घरे गामगए नगरे व संजए सन्तीमागंच बूहए समयं गोयममा पमायए ॥३२५|| -38 (३२७) बुद्धस्स निसम्म मासियं सुकहियमट्ठपओक्सोहियं रागं दोसंच छिंदिया सिद्धिगई गए गोयमे त्ति खेमि ।। ||३२६॥-97 . इसमं अन्यपणं सक्तं. इक्कारसमं अज्झयणं-बहुस्सुपपुलं | (१२८) संजोगा विप्पमुक्कस्स अणगारस्स भिक्खुणो आयारं पाउकरिस्सामि आणुपुर्दियं सुणेह मे ||३२७॥ -1 (३२९) जे यावि होइ निविले यद्धे लुद्धे अणिग्गहे अभिक्खणं उल्लवई अविणीए अबहुस्सुए ॥३२८11-2 (३३०) अह पंचर्हि ठाणेहिंजेहिं सिक्खा न लब्मई धम्मा कोहा पमाएणं रोगेणालस्सएणय ॥३२९।। -3 (२३) अह अर्हि ठाणेहिं सिक्खासीले ति दुचई अहस्तिो सया दंते न यमम्ममुदाहरे ॥३३०।-4 (३३२) नासीले न विसीले न सिया अइलोलुए अकोहणे सच्चरए सिक्खासीले ति वुझाई ||३३0-5 (१५३) अह घोहसहि ठाणेहि वट्टमाणे उ संजए अविणीएचई सो उनिव्याणं धन गच्छइ ॥३३२।। -8 अभिक्खण कोहोहवइ पबंधं च पकुव्बई मेत्तिजमाणो यमइसुयं लब्धूण माई በዚህ ፡ (१५५) अवि पावपरिक्खेवी अवि मित्तेसु कुप्पई सुप्पियस्सावि मित्तस्स रहे मासइ पावयं ॥३३॥ (१५६) पइण्णवाई दुहिले यद्धे लुद्धे अणिग्गहे असंविमागी अचित्तेअविणीएति बुखाई ॥३३५|| (१३७) अह पत्ररसहिं ठाणेहि सुविणीए त्ति वुचई नीयवत्तो अचवले अमाई अकुऊहले ॥३३६॥ -10 (३२८) अपंच अहिक्खिबई पबंधं च न कुब्बई मेत्तिजमाणो भयई सुयं लधुनमाई ॥३३७||-11 (१३) नय पावपरिक्खेवी न य मित्तेसु कुप्पई अप्पियस्सावि मित्तस्स रहे कल्लाण मासई ॥३३८|| -12 (३४०) कलहडमरवञ्जिए बुद्धे अभिजाइए हिरिमं पडिसंलीणे सुविणीए ति बुधई ॥३३९|| -13 (३४१) वसे गुरुकुले निचं जोगवं उवहाणवं पियंकरे पियंवाई से सिक्खं लद्भुमरिहई (१५४) |३४011-14 For Private And Personal Use Only
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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