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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir LY पिनियुति - (101) ||९१-91 ||१२||-02 १९३11-23 १९४1-94 १९५11-98 ||१६|1-86 ||२७||-97 ॥१६॥पा.-16 ||१७||पा.-17 (१०६) सणनाणप्पभवं चरणंसुद्धेसु तेसुतस्सुद्धी ____ चरणेण कम्मसुद्धी उग्गमसमुखीइ चरणसुखी (१०७) आहाकमुदसिय पूईकम्मे य मीसजाए य ठवणा पाहुडियाए पाओअर कीय पामिच्चे (१०८) परियटिए अभिहडे उब्जिने मालोहडे इय अच्छिले अनिसिढे अज्झोयरए यसोलसमे (१०९) आहाकम्भियनामाएगट्ठा कस्स वावि किं वावि परपक्खे यसपक्खे चउरो गहणे य आणाई (११०) आहा अहे य कम्मे आयाहम्मे य अत्तकम्मे य पडिसेवण पडिसुणणा संवासऽणुमोयणा चेव (१११) धणुजुयकायभराणं कुडुंबरजधुरमाइयाणं च खंधाई हिययं चि मियदव्वाहा अंतए धणुणो (११२) ओरालसरीराणं उदयण तिवायणंच जस्सट्टा मणमाहित्ता कीरइ आहाकमंतयंति (११३) ओसलग्गहणेणं तिरिक्खमणुयाऽहवा सुहुमवजा उद्दवणं पुणजाणसु अइवायविवक्षियं पीडं। (१४) कायवइमणो तिनिउ अहवा देहाउइंदियप्पाणा सामित्तावायाणे होइ तियाओ य करणेसुय (११५) हिययंमि समाहेउं एगमणेगं च गाहगंजो उ वहणं करेइ दाया कायेण तमाहकमंति (1) जंदव्वं उदगाइसुछूढमहे वयइ जंच मारेणं सीईए र एणव ओयरणं दब्बडकम (११७) संजमठाणाणं कंडगाण लेसाठिईविसेसाणं भावं अहे कोई तम्हातंभावऽहेकम (114) तत्याणंता उचरित्तपत्रया होति संजमाण संखइयाणि उताणि कंडग होइनायव्यं (११९) संखाईयाणि उ कंडगाणि छट्ठाणगं विणिद्दिद्वं छट्ठाणा उअसंखा संजमसेदी मुणेयव्या (१२०) किण्हाइया उ लेसा उकोसविसुद्धिठिइविसेसाओ एएसि विसुद्धाणं अपंतग्गाहगो कुणइ (१२१) भावोवयारमाहेउमप्पगे किंचिनूणचरणग्गो आहाकम्मग्गाही अहो अहो नेइ अप्पाणं (१२२) बंधइ अहे भवाऊ पकरेइ अहोमुहाईकमाई घणकरणं तिव्येण उमावेण चओ उपचओय (१२३) तेसि गुरुणमुदएण अप्पगं दुगईऍ पवईत नचएइ विधारेउं अहरगति निति कम्पाई |१८||पा.-18 ॥९८1-98 1९९|-99 |१९|| मा.-19 ॥२०॥ मा.-20 ॥२१॥ मा.-21 ॥१००11-100 ||१०१॥-101 1१०२॥-102 For Private And Personal Use Only
SR No.009771
Book TitleAgam 41B Ohnijjutti Mulsutt 02B Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages52
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41, & agam_pindniryukti
File Size2 MB
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