SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओहनियुत्ति - (२४८) ||१५८|1-157 ॥१५९||-268 11१६०11-159 ||१६१11-180 १६२||-161 ॥१६३||-162 ॥१६४||-163 ॥१६५||-164 ॥१६६||-165 (२४८) गंतूण गुरुसमीयं आलोएता कहेति खेत्तगुणा नय सेसकहण माहोज संखई रत्ति साहेति (२४९) पढमाएँ नत्थि पढमा तत्य उ घयवीरकूरदहिलंभो बिइपाए विइ तइयाएँ दोवि तेसिं च धुयलंभो (२५०) ओहासिअधुवलंमो पाउग्गाणं चउत्थिए नियमा इहरावि जहिच्छाए तिकालजोगं च सव्वेसिं (२५१) मयगहणं आयरिओकत्य वया मोत्ति तत्थ आयरिओ खुमिआ मणंति पढमंतं चिअ अनुओगतत्तिला (२५२) दिइयं च सुत्तगाही उभयग्गाही अ तइययं खेतं आयरिओ अचउत्यं सो उपसाणं हवइ तत्य (२५३) मोहब्भवोउ बलिए दुब्बलदेहो न साहए जोए तो मझवला साहू दुइऽस्सेणेत्य दिलुतो (२५४) पणपत्रगस्स हाणी आरेणंजेण तेण वा धरइ जइ तरुणा नीरोगा वच्चंति चउत्थगं ताहे (२५५) अह पुण जुण्णा घेरा रोगविमुक्का यअसहुणो तरुणा ते अनुकूलं खेत्तं पेसंति न यावि खगूडे (१५६) एगपणअद्धमासंसट्ठी सुणमणुयगोणहत्यीणं राइंदिएण उबलं पणगं तो एक्क दो तिन्नि (२५७) सागारिऽपुच्छगमणे षाहिरा मिच्छ छेय कयनासी गिहि साहू अभिधारण तेणगसंकाइ जंचऽन्नं (२५८) अविहीपुच्छा उग्गाहिएण सिञ्जातरी उ रोएडा सागारियस्स संका कलहे य सेजिआ खिंसे (२५९) वसहीए वोच्छेओ अभिसंघारितयाण साहूणं पुणरावती होञ्ज वपन्चना उझुअपईणं (२९०) हरिअच्छेयण छप्पइय धधणं कियणं च पोताणं छपणेयरं च पगयं इच्छमणिच्छे य दोसाउ जइया चेव उ खेतं मया उपडिलेहगातओपाए सागारियस भावं तणुएंति गुरू इमेहिं तु (२६२) उच्छू बोलिति बई तुंबीओजायपुत्तभंडाय वसमाजापत्यामा गामा पव्वायचिक्खल्ला (२६३) अप्पोदगा य मग्गा वसुहाविय पक्कमट्टिआजाय अण्णकंता पंया साहूणं विहरिउकालो (२६४) सपणाणं सउणाणं अमरकुलाणं च गोउलाणंच अनियाओ वसहीओ सारइयाणं च मेहाणं (२६५) आवस्सगकयनियमा कलंगच्छाम तो उ आयरिओ सपरिजणं सागरिअ वाहरिमंदिति अनुसिद्धि 11१६७||-166 १६८॥-187 11१३ .13 11१६९||-188 ॥१७०11-169 ॥१७१-170 ॥१७२|-171 ॥१७३11-172 ॥१७४||-173 For Private And Personal Use Only
SR No.009770
Book TitleAgam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages78
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41, & agam_oghniryukti
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy