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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दसा - 10 भिक्खुपडिमाओ पन्नत्ताओ कतराओ खलु ताओ येरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पन्नताओ इमाओ खलु ताओ येरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पन्नत्ताओ तं जहा मासिया भिक्खुपडिमा दोमासियाभिक्खुपडिमा तेमासियाभिक्खुपडिमा चउमासियाभिक्खुपडिमा पंचमासियाभिक्खुपडिमा छम्मासियाभिक्खुपडिमा सत्तमासियाभिक्खुपडिमा पढमा सतरातििदिया भिक्खुपडिमा दोह्यासत्तरातिंदियाभिक्खुपडिमा तचासत्तरातिंदियाभिक्खुपडिमा अहोरातिंदियाभिक्खुपडिमा एगराइयाभिक्खुपडिमा । ३१ । 99 (४९) मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवत्रस्स अणगाररस निघं चोसट्टकाए चत्तदेहे जे केइ उवसगा उववज्रंति तं जहा दिव्वा वा माणुस्सा वा तिरिक्खजोणिया बा ते उप्पत्रे सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति भासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पति एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहेत्तए एगा पाणगस्स अण्णाउंछं सुद्धोवहडं निञ्चहित्ता बहवे दुपय- चउप्पयसमण-पाहण- अतिहि-किवण-वणीमाए कप्पति से एगस्स भुंजमाणस्स पडिग्गाहेत्तए नो दोपहं नो तिण्हं नो चउन्हं नो पंचण्हें नो गुब्विणीए नो बालवच्छाए नो दारगं पञ्जेमाणीए नो अंतो एलुयस्स दोवि पाए साहड्ड दलमाणीए नो बाहिं एलुयस्स दोवि पाए साहड्ड दलमाणीए एगं पादं अंतो किचा एवं पादं बाहिं किच्चा एलुयं विक्खंभइत्ता एवं दलयति एवं से कप्पति पडिग्गाहेत्तए एवं नो दलयति एवं नो से कप्पति पडिप्पात्तए मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स तओ गोयरकाला पन्नत्ता तं जहा आदि मज्झे चरिमे, आर्दि चरति नो मज्झे चरति नो चरिमे चरति, मज्झे चरति नो आदि घरति नो चरिमं चरति, चरिमं चरति नो आदिं चरति नो मज्झे चरति मासियण्णं भिक्खुपडिमं पवित्रस्स अणगारस्स छव्विधा गोयरचरिया पत्रत्ता तं जहा पेला अद्धपेला गोमुत्तिया पयंगवीहिया संयुक्कावट्टा गंतुपञ्चागता मासियण्णं भिखुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स जत्यणं केइ जाणइ गामंसि वा जाव मडंबंसि वा कष्पति से तत्थ एगरावं वत्थए जत्थ णं केइ न पति से तत्थ एगरायं वा दुरायं घा यत्थए नो से कप्पति एगरायातो वा दुरायातो वा परं वत्थए जे तत्थ एगरायाती वा दुरायातो वा परं वसति से संतरा छेदे वा परिहारे वा मासियणं भिक्खुपडिमं पडियनस्स अणगारस्स कप्पंति चत्तारि मासाओ भासित्तए तं जहा जायणी पुच्छणी अनुष्णमणी पुट्ठस्त वागरणी, मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवत्रस्स अणगारस्स कव्यंति तओ उवस्सया पडिलेहित्तए तं जहा - अहे आरामगिहंसि वा अहेवियडगिहंसि वा अहेरुक्खमूलगिहंसि वा मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्त्रस्स अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया अनुण्णवेत्तए तं जहाअहेआरामगिर्हसि वा अहेवियडगिहंसि वा अहेरुक्खमूलगिहंसि वा मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया उवाइणित्तए जाव मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कव्यंति तओ संघारगा पडिलेहित्तए जाव मासियण्णं भिक्खुपडिमं पवित्रस्स अणगारस्स कप्पंति तओ संथारगा अनुण्णवेत्तए जाव मासियण्णं भिक्खुपडिमं पवित्रस्स अणगारस्स कप्पंति तओ संधारगा उवाइणित्तए [तं जहा पुढदिसिलं वा कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव] मासियण्णं भिक्खु- पडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स इत्थी उवस्सयं हव्यमागच्छेजा सइत्थिए व पु रेसे नो से कप्पति तं पडुच्च निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा तत्थ णं केइ बाहाए गहाय आगसेज नो से कष्पति तं अवलंबित्तए या पचवलंबित्तए वा कप्पति से अहारियं रीइत्तए मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स पायंसि खाणू वा कंटए वा हीरए वा सक्करए चा For Private And Personal Use Only
SR No.009765
Book TitleAgam 37 Dasasuyakkhanda Chheysutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages34
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 37, & agam_dashashrutaskandh
File Size1 MB
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