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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोसो-४ उवसंपअित्ताणं विहरित्तए जत्युत्तरियं पम्पविणयं नो लपेक्षा एवं से नो कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उपसंपञ्जित्ताणं विहरित्तए।२०1-20 (११) भिक्खू य इच्छेज्जा अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसादेत्तए नो से कप्पाइ अणापुच्छिता आयरियं बाजार गणावच्छेइयं या अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेतए कप्पा से आपुच्छित्ता आयरियं वाजाव गणायच्छेइयं वा अण्णं आयरिय-उवज्झाय उदिसावेत्तए ते य से यियरेता एवं से कप्पइ अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए ते य से नो वियरेज्जा एवं से नो कप्पइ अण्णं आयरिय-उवज्झायं उदिसावेत्तए नो से कप्पइ तेसिं कारणं अदीवेत्ता अण्णं आयरिय-उवज्झायं उदिसावेत्तए कप्पड़ से तेसिं कारणं दीवेत्ता अपणं आयरिय-उवग्झायं उदिसावेत्तए ।२१/21 (१३२) गणावच्छेइए य इच्छेजा अण्णं आयरिय उयज्झायं उद्दिसावेत्तए नो से कप्पड़ गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिदित्ता अण्णं आयरिय-उवम्झायं उदिसावेत्तए कप्पड़ से गणावछेइयत्तं निक्खिवित्ता अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं या अण्णं आयरिय उवज्झायं उद्दिसावेतए कप्पड़ से आपुच्छित्ता आयरियं या जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए ते य से वियरेझा एवं से कप्पड़ अण्णं आयरिय-उवज्झायं उदिसावेत्तए ते य से नो वियरेजा एवं से नो कप्पइ अण्णं आयरियउवज्झायं उद्दिसावेत्तए नो से कप्पइ तेसिं कारणं अदीवेत्ता अण्णं आयरिय उयज्झायं उदिसावेत्तए कप्पइसे तेर्सि कारणं दीयेता अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए।२२१-22 (१५५) आयरिय-उवज्झाए य इच्छेना अण्णं आयरिय-उवम्झायं उदिसावेत्तए नो से कप्पइ आयरिय-उवझायत्तं अणिक्खिवित्ता अण्णं आयरिय-उयन्झायं उद्दिसादेत्तए कप्पड़ से आयरिय-उयज्झायत्तं निक्खिवित्ता अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए नो से कप्पइ अणापुचित्ता आयरियं वा जाय गणावच्छेइयं वा अण्णं आयरिय-उवन्झायं उहिसावेतए कप्पइ से आपच्छिता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं आयरिय-उवझायं उहिसावेत्तए ते य से वियोजा एवं से कप्पइ अपणं आयरिय-उवझायं उद्दिसावेत्तए ते य से नो वियरेक्षा एवं से नो कम्पइ अपणं आयरिय उवज्झायं उदिसावेत्तए नो कप्पइ तेर्सि कारणं अदीयेत्ता अण्णं आयरियउवझायं उद्दिसावेत्तएकप्पइते तेर्सिकारणंदीवेत्ताअण्णंआयरिय-उवज्झायं उहिसा०।२३1-23 (१) भिक्ख य राओ या वियाले वा आहन वीसुंभेजा तं च सरीरगं केइ यावधकरे इच्छेन्जा एगंते बहुफासुए पएसे परिष्द्ववेत्तए अत्यि या इत्य केइ सागारियसंतिए उवगरणजाए अचित्ते परिहरणारिहे कप्पइ से सागारियकडं गहाय तं सरीरगं एगते बहुफासुए पएसे परिद्ववेत्ता तत्येव उवनिकिखवियव्ये सिया २४1-24 (१३५) भिक्खू य अहिगरणं कटतं अहिगरणं अविओसवेत्ता नो से कप्पड़ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए या पविसित्तए या बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए या गामाणुगामं वा दूइजित्तए गणाओ या गणं संकमित्तए वासावासं वा वस्थए जत्ये अप्पणो आयरिय-उवज्झायं पासेझा बहुस्सुयं षण्मागमं तस्संतिए आलोएडा पडिक्कमेशा निंदेजा गरहेजा विउद्देशा विसोहेला अकरणयाए अब्मुडेजा अहारिहं तवोकम्म पापछित्तं पडिव झा सेय सलुएण पट्टविए आइयब्वे सिया, से य सुएणनो पट्टविए नो आइयव्ये For Private And Personal Use Only
SR No.009763
Book TitleAgam 35 BuhatKappo Chheysutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages26
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 35, & agam_bruhatkalpa
File Size1 MB
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