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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निसीहं - १/१७ (१८) जे भिक्खू कण्णसोहणगस्स उत्तरकरणं अन्नउत्यिएण वा गारथिएण वा कारेति कारेंतं वा सातिजति।१८7-18 (११)जे भिक्खूअणट्ठाए सूइंजायति जायंतं या सातिअति |१९|-19 (२०)जे भिक्खूअणट्ठाए पिप्पलगंजायति जायंतं वा सातिअति।२0120 (२१) जेभिक्खूअणट्ठाए नखच्छेयणगंजायति जायंतं वा सातिञ्जति ।२१।-21 (२२)जे भिक्खू अणट्ठाए कण्णसोहणगंजायति जायंतं वा सातिशति ।२२१-22 (२३) जे भिक्खू अविहीए सूईजायति जायंतं वासातिजति।२३|-23 (२४) जे पिक्खू अविहीए पिप्पलगंजायति जायंतं वा सातिजति।२४-24 (२५) जे भिक्खू अविहीए नहच्छेयणगं जायति जायंतं वा सातिअति ।२५1-25 (२६) जे मिक्खू अविहीए कण्णसोहणगंजापति जायंत वा सातिजति।२६।-28 (२७) जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए सूइंजाइत्ता अन्नमन्नस्स अनुप्पदेति अनुप्पदेंतं वा सातिजति।२७/31 (२८) जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए पिप्पलगं जाइत्ता अन्नमन्नस्स अनुप्पदेति अनुप्पदेतं वा सातिजति।२८1-32 (२१) जे मिक्खू अप्पणो एककस्स अवाए नहच्छेयणगं जाइता अन्नमन्नस्स अनुप्पदेति अनुप्पदेंतं वा सातिअति ।२९)-33 . (३०) जे मिक्खू अपणो एक्कस्स अट्ठाए कपणसोहणगंजाइता अननमन्नस्स अनुप्पदेति अनुप्पदेंतं वा सातिअति।३०।[२७ थी ३०]-34 (३१) जे भिक्खू पाडिहारियं सूई जाइता वत्यं सिब्बिस्सामित्ति पायं सिब्वति सिव्वंतं वा सातिञ्जति।३१1-27 (३२) जे मिक्खू पाडिहारियं पिप्पलग जाइता वत्यं छिंदिस्सामित्ति पायं छिंदति छिंदतं या सातिञ्जति ।३२1-28 (३३) जे भिक्खू पाडिहारियं नहच्छेयणगं जाइत्ता नहं छिंदिस्सामित्ति सल्लुद्धरणं करेति कोत वा सातिअति ।३३।-29 (ar) जे मिक्खू पाडिहारियं कण्णसोहणगं जाइत्ता कण्णमलं नीहरिस्सामिति दंतमलं वा नखमलं वा नीहोति नीहरेंतं वा सातिझति।३४/30 (३५) जे मिक्खू सूई अविहीए पञ्चप्पिणति पञ्चप्पिणंतं वा सातिजति |३५:55 (३६) जे मिक्खू अविहीए पिप्पलगंपचप्पिणति पद्मप्पिणतं या सातिशति ।३६1-96 (३७) जे मिक्खू अविहीए नहच्छेयणगं पञ्चप्पिणतं वा सातिअति |३७|37 (३८) जे भिक्खू अविहीए कण्णसोहणगं पच्चप्पिणति पञ्चप्पिणंतं वा सातिजति ।३८१-38 (३१) जे भिक्खू लाउपायं वा दारुपायं वा मट्टियापार्य या अन्नउत्थिएण वा गारत्यिएण वा परिघट्टावेति वा संठवेति या जमावेति वा अलमप्पणो करणयाए सुहममवि नो कप्पह जाणमाणे सरमाणे अन्नमननस्स वियरति विपरंतं वा सातिञ्जति ॥३९॥38 (४०) जे भिक्खू दंडयं वा लट्ठियं वा अवलेहणियं वा वेणुसूइयं वा अण्णउथिएण वा गारस्थिएण वा परिघटावेति वा [संठवेति वा जमावेति वा अलमप्पणो करणयाए सुहुममवि नो कप्पइजाणमाणे सरमाणे अन्नमन्नस्स वियरति वियरंतं वा सातिजति।४०।-40 (४१) जे मिक्खू पायस्स एकंतुडियं तड्डेति तङ्केतं वा सातिजति।४१।-41 For Private And Personal Use Only
SR No.009762
Book TitleAgam 34 Nisiha Chheysutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages90
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 34, & agam_nishith
File Size2 MB
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